Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
१७२
तस्वार्थचिन्तामाणिः
समय किसी किसी पदार्थम सताका सन्देह हो जाता है ऐसा माननेएर तो सत्ताको अनेकरूपत्व अच्छी रीतिसे ( तरह ) आजाता है । देखिये घरमै रहनेवाली सचाका घटमें विशेषणपना भिन्न है
और दूसरे पदार्थोंमें रहनेवाली सत्ताका अर्थान्तरके साथ विशेषणपना निराला है । गुण या क्रिया में रहनेवाली सत्ता न्यारी है इस प्रकार अनेक धर्मवाली सत्ता नानारूप सिद्ध होती है।
नानाविशेषणात्वं नाना न पुनः सत्वं तस्य ततो भेदादिति चेत् तर्हि घटविशेपणत्वाधारस्वेन सवस्य प्रतीतो सर्वार्थविशेषणत्वाधारत्वेनापि प्रतिपत्तेः स एव संशयापाय: सर्वाविशेषणत्वाधारत्वस्य ततोऽनन्तरत्वात् ।
सत्ता में रहनेवाले नाना अोंक विशेषणपन ही अनेक है किंतु फिर सत्ता अनेक नहीं है क्योंकि वह सत्ता अपने उन विशेषणोंसे सर्वथा भिन्न है। धर्म धर्मासे भिन्न होता है। यदि वैशेषिक ऐसा कहेंगे तब तो घटविशेषणत्व-धर्मके आश्रयपनसे सत्ताको जान लेनेपर सम्पूर्ण अोंके विशेषणपनके आधाररूपसे भी सत्ताको प्रतीति हो चुकी है। क्योंकि सत्ता तो एक ही है और निरंश है। मत: एक सत्ताके जानलेनेपर सम्पूर्ण पदार्थोंका जानना सिद्ध हो गया तो वहका वहीं, कहीं भी संशयका न रहनारूप दोष तदवस्य रहा, कारण कि सत्ताके उस घटविशेषणत्वका आधारपन धर्मसे सर्वामि विशेषणत्वका आधारपना धर्म भिन्न नहीं है, एक ही है।
तस्यापि नानारूपस्य सत्वानेदे नानार्थविशेषणत्वामानारूपादनर्यान्तरस्वसिद्धेः सिद्ध नानाखमा सवं समानार्थविशेषणम्, तद्वत्समवायोऽस्तु ।
यदि वैशेषिकसचाफे उन अनेक धर्मोको भी सत्तासे भिन्न होरहे मानेंगे सो नाना अर्थोके विशेषणत्वरूप जो नाना स्वरूप हैं उनसे नाना रूपोंका अभेद सिद्ध हो जायेगा क्योंकि सर्वथा मिलसे जो भिन्न है वह प्रकृतसे अभिन्न होता है। इस तरह नानारूपोंसे सत्ताका अमेद सिद्ध हुआ। तथाच एकवारमें नाना अोंमें विशेषणरूपसे विधमान होरहा सत्ता अनेफस्वभावशाली ही सिद्ध होती है । उस सत्ताके समान समवायको भी आप अनेक मान लेवें यही हितमार्ग है।
द्रव्यत्वादिसामान्यं द्विस्वादिसंख्यान, पृथक्त्वाद्यवयविद्रव्यमाकाशादि विशुद्रव्यं च. स्वयमेकमपि पुरा यदनेकार्थविशेषणमित्येतदनेन निरस्तम् । सर्वौकस्य तथाभावविरोध सिद्धेरिति न परपरिकल्पितस्वभावः समवायोऽस्ति, येनेश्वरस्य सदा ज्ञानसमवायितोपपत्तेईस्वं सिद्धयेत् ।
नैयायिक और वैशेषिक सत्तासे अतिरिक्त निम्न लिखित पदार्थों को भी एक होकर अनेक पदार्थों में रहनेवाला मानते हैं। जैसे कि द्रव्यत्व नामकी जाति एक है किन्तु पहिलेसे ही पृथ्वी,