Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वाचिन्तामणिः
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योऽप्याह " अविधातृष्णान्या विनिर्मुक्तत्वात्प्रमाणभूतो जगद्धितैषी सुगतो मार्गस्य शास्तेति " सोऽपि न प्रेक्षावान् तथा व्यवस्थित्यघटनात् ।।
इस कारिकाका भाष्य ऐसा है कि जो भी कोई बुद्धमतानुयायी वादी यह कहता है कि "अनेक जीवोंके द्वारा विश्वासको प्राप्त प्रमाणभूत और जगत्के सम्पूर्ण प्राणियोंका हित चाहनेवाला बुद्ध भगवान् ही अविद्या तथा तृष्णाके वाल वाल सर्वधा दूर हो जानेसे मोक्षमार्गका शिक्षण करनेवाला है।" ग्रंथकार कहते हैं कि वह भी बौद्धमती हिताहितका विचार करनेवाला नहीं है। क्योंकि वैसे माने गये के अनुसार बुद्धकी व्यवस्था घटित नहीं हो सकती है । सुनियेः
न हि शोभनं सम्पूर्ण वा गतः सुगतो व्यवतिष्ठते, क्षणिकनिरास्त्रवचित्तस्य प्रज्ञापारमितस्य शोभनत्वसंपूर्णत्वाभ्यामिष्टस्य सिद्ध्युपायापायात् ।
सुगत शब्दके निरुक्तिसे तीन अर्थ होते हैं। पहिले " सु" उपसर्गके प्रकृतमें शोभन, सम्पूर्ण, सुष्ठ, ये तीन योत्य अर्थ हैं । तिनमें प्रथमके दो अर्थ तो बुद्धमै घटते नहीं हैं । परिशेष तीसरा अर्थ ही मानना पड़ेगा। यानी फिर लौट कर न आनारूप अनावृतिसे बुद्ध चला गया, वह या उसका चित्त पुनः नहीं उत्पन्न होगा अर्थात् शून्ययादमें प्रवेश समझिये । प्रथमके दो अर्थो का भी अब विचार करते हैं। देखिये आप बौद्धोंके विचार अनुसार--
सुगत शब्दको अर्थ यदि यह किया जाय कि "सु" यानी शोभायुक्त होकर " गतः " माने प्राप्त हो गया। भावार्थ-संसार अवस्थामै क्षणिकझानकी सन्तान अनेक पूर्वासनाओंसे वासित होती हुयीं उत्पन्न होती रहती हैं। किंतु सुगतकी ज्ञानसन्सान तो अविद्या और तृष्णाकी वासनाओंके आसवसे रहित होकर अच्छी तरह क्षणिक उत्पन्न होती रहती है और मोक्षावस्था भी उस चित्तको सन्तान बराबर पैदा होती रहती है । अथवा सुगतका दूसरा अर्थ यह किया जाय कि "सु" माने सम्पूर्णरूपसे " गतः " यानी पदार्थोंका जाननेवाला सुगत है। भावार्थ-सर्वपदार्थों के प्रत्यक्ष करनेवाले सर्वज्ञप्रत्यक्षसे स्वलक्षण, क्षणिक, दुःख, शून्यरूप चार आर्यसत्योंको जानता है । और वह सुगत मविष्य भी इनको जानता रहेगा । गत्यर्थक “ गम् " धातुके ज्ञान, गमन, प्राप्ति और सर्वथा चला जाना ( मोक्ष ) ये अर्थ माने गये हैं। यों उक्त दोनों ही तरहसे सुगतकी व्यवस्था नहीं हो सकती है क्योंकि आस्रवरहित क्षणिकचित्तोंके उत्पादकको आपने शोभनफ्नसे इष्ट किया है और भूत, वर्तमान, भविष्यत् पदार्थोंके सम्पूर्णपने जाननेवाली बुद्धि के पारको प्राप्त हो जाना अर्थ माना है, जब कि इनकी सिद्धिका उपाय आपके पास नहीं है ।
___ भावनाप्रकर्षपर्यन्तस्तसिद्ध्युषाय इति चेत्, न, भावनाया विकल्पात्मकत्वेनातपथविषयायाः प्रतर्षपर्यन्तप्राप्तायास्तत्वज्ञानवैतृष्ण्यस्वभावोदयविरोधात् ।