Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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सत्वा चिन्तामणिः
इस कारण अबतक इस प्रकार सिद्ध हुआ कि अपने सम्बन्धी समवायियोंसे सर्वथा भिन्न कास्पित किये गये समवायके माननेमें प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे बाधा होती है, और उस द्रन्यका तदात्मक विशेष परिणामको स्वीकार करनेसे कोई बाधा उपस्थित नहीं है । अतः तादात्म्यसम्बन्धरूप समवायकी प्रसिद्धि हुयी । ज्ञानके समवायसे आप अपने ईश्वरको विज्ञ कहते हैं इसका अमिमाय यही निकला कि वह ईश्वरके साथ कथंचित् तादात्म्यपरिणाम होनेसे ही सर्वज्ञ हो सकता है। अन्यथा नहीं।
स च मोक्षमार्गस्य प्रणेतेति भगवानहनेव नामान्तरेण स्तूयमानः केनापि वारयितुमशक्यः । परस्तु कपिलवदशो न तत्प्रणेता नाम।
और आत्मस्वरूप ज्ञानसे तादात्यसम्बन्ध रखता हुआ वह महेश्वर मोक्षमार्गको आध अवखामे प्रगट करनेवाला है । यह तो दूसरे शब्दोंमें आपने भगवान् जिनेन्द्रदेव अर्हत् परमेष्ठीकी ही स्तुति की जा रही है। अर्हन्तको सर्वज्ञपनेका किसीके द्वारा रोकनेपर भी निवारण नहीं हो सकता है । बलात्कारसे ज्ञानात्मक जिनेंद्रदेवकी स्तुति आपके मुखद्वारा निकर पडती है । हां, दूसरा कोई नैयायिक, या वैशेषिकके द्वारा कल्पित किया गया कर्ता, हर्ता, सर्वशक्तिमान, व्यापक, ईश्वर तो उस मोक्षमार्गका भतानेवाला नहीं सिद्ध हो सकता है । क्यों कि जैसे कपिल, बहस्पति आदि ज्ञानसे भिन्न होने के कारण अज्ञ है । उसी सरह नैयायिकोंका ईश्वर मी ज्ञानसे सर्वया भिन्न होने के कारण अज्ञ है, और अज्ञानी आत्मा भला लोष्ठ के समान कैसे क्या उपदेश देवेगा ! कुछ नहीं। इस प्रकार नैयायिकोंके मतका निराकरण हो चुका । प्रमाण, प्रमेय आदि सोलह पदार्थोंको नैयायिक मानते हैं और द्रव्य, गुण, कर्म, आदि सात पदार्थ वैशेषिकके यहां माने गये हैं। हाँ सत्त्वप्रणाली एकसी है। इसतरह नैयायिक और वैशेषिकमतमें प्रायः समानता देखी जाती है । इस कारण हमने भी दोनोंको ईश्वरवादमें या गुणगुणीके भेदपादमें एकसा मानकर दोनोंका मिलाकर निराकरण कर दिया है । इसके आगे बौद्धोंके बुद्धदेवका विचार करते हैं ।
सुगतोऽपि न मार्गस्य प्रणेता व्यवतिष्ठते । तृष्णाविद्याविनिर्मुक्तेस्तत्समाख्यातख़ानिवत् ॥ ७७ ॥ विषयोंकी आकांक्षा करना तृष्णा है और अनात्मा, क्षणिक, दुःख अशुचि होरहे पदार्थों में आत्मा, नित्य, सुख, पवित्ररूपताका अभिमान करना अविद्या है । इन दोनोंके पूर्णरूपसे सदाके लिये नष्ट होजानेपर बुद्ध भगवान् मोक्षमार्गका प्रगट करनेवाला सिद्ध है। यों यह सौगतमन्तव्य मी प्रमाणोंसे व्यवस्थित नहीं है । जैसे कि बौद्धोंके यहां भले प्रकार विचारप्राप्त होगया खड़ी मोक्षमार्गका शासक नहीं है।