Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
साभावात् । नाप्यनुमानं लिंगाभावात्, इहेदामिति प्रस्पयो लिंगमिति चेत्, न, तस्य समायिवादालम्पस्वभावसमवायसाधकत्वेन विरुद्धस्वात्, निस्पसर्वगतैकरूपसमवायेनानासरीयकत्वात्।
द्रव्यसे समवाय पदार्थ सर्वथा मिल दीख रहा है अतः समवायका दन्यसे कथंचिद् भेदाभेदस्वरूप परिणाम करके जैनोंको ज्ञान भ्रम पूर्ण है ऐसा तो वैशेषिकोंको नहीं मानना चाहिये क्योंकि द्रव्यसे उस समवायको एकांतरूपसे भिन्न ग्रहण करनेवाले प्रमाणका अभाव है । देखों उन प्रमाणों में पहिला प्रत्यक्ष प्रमाण तो समवाय और समवायीके भेदका ग्राहक नहीं है । कारण कि उस प्रत्यक्षसे यह द्रव्य है, ये गुण, किया, जाति, आदि हैं, इनके बीच पडा हुआ यह समवाय संबन्ध निराला है, इस प्रकार अंगुलीसे निर्देश करने योग्य भेदका ज्ञान होता नहीं है । और दूसरा प्रमाण अनुमान भी अर्थसे भिन्न समवायको जानता नहीं है। क्योंकि उसका उत्पादक अविनामावी हेतु यहां नहीं है । यदि " इस आत्मा आदिकमै यह ज्ञान आदि हैं।" इत्यादिकारक प्रतीतिको हेतु मान करके समयायको सिद्ध करोगे, सो यह तो ठीक नहीं है क्योंकि वह हेतु समवायियों के साथ तावात्म्यसम्बन्धस्वरूप समवायका साधक है, नित्य एक समवायका नहीं। अतः आपके अमिमेत होरहे समवायसम्बन्ध-स्वरूप साध्यस विरुद्धके साथ व्याप्ति रखनेके कारण आएका हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है। " इसमें यह है ।" इत्याफारफ पतीतिरूप हेतु आपके माने हुए नित्य, ज्यापक, और एकरूप समवायके साथ अविनाभावी महीं है । यह हेतु अनित्य, अनेक, संयोगोंको भी सिद्ध कर देता है । नान्तरीय शब्दकी न अन्तरे भवति इति नान्तरीयकः न नान्तरीयक इति अनान्तरीयकः ऐसी निरुक्ति कीजाय ।
गुणादीनां द्रव्यात्कयश्चित्तादात्म्याभासनस्य द्रव्यपरिणामस्वस्य चाभावात्साधनशून्य साभ्यशून्यं च निदर्शनमिति चेन, अत्यन्सभेदस्य ततस्तेषामनिश्चयासदसिद्धेः ।
महा वैशेषिक कहते हैं कि गुणादिदृष्टान्तमें द्रव्यसे कथंचित् तदात्मकरूपसे प्रकाशन होनारूप हेतु और द्रन्यका परिणाम होना रूप साध्य नहीं विद्यमान है । इस कारण आप जैनोंका गुणादि दृष्टान्त तो हेतु और साध्यसे रहित है। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह उनका कहना कथमपि अच्छा नहीं है। क्योंकि उस द्रव्यसे उन गुणादिकोंके अत्यन्त भेदका अभीतक निश्चय नहीं हुआ है। अतः आपके उस सर्वथाभेदकी सिद्धि नहीं है । तथा च हेतु और साध्य दोनों ही गुणादि नामक दृष्टान्तमें पाये जाते हैं।
गुणगुणिनी, क्रियातद्वन्तौ, जातिवद्वन्तौ च परस्परमत्यन्त भिन्नौ भिन्नप्रतिभासत्वात् घटपटवदित्यनुमानमपि न त दैकान्तसाधनम् । कथाश्चिद्भिन्नप्रतिभासत्वस्य हेतोः कथाश्चिपझेदंसाधनतया विरुद्धत्वात्, सिद्धधभावात् ।