Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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सत्त्वार्थचिन्तामणिः
व्याख्यान किया है । उस कारणसे उन पदार्थों में रहनेवाले समवायकी विशेषता करनेवाला मला कोई अतिशय नहीं है जिससे कि आकाश, आदिको छोड़कर वह अतिशयधारी समवाय आत्मामें ही ज्ञानका सम्बन्ध करा देता, इस बातको हम भले प्रकार समझते हैं ।
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सत्तावदेकत्वेऽपि समवायस्य प्रतिविशिष्टपदार्थविशेषणतया विशेषकारित्वमिति वेत् तर्हि विशिष्टः समवायः प्रतिविशेष्यं सत्तावदेव इति प्राप्तो द्वितीयः पक्षः तत्र चः
नैयायिक या वैशेषिक बोलते हैं कि जैसे सत्ताजाति एक है फिर भी वह भिन्न भिन्न द्रव्य, गुण, कमी रहती हुयी द्रव्यकी सच्चा, गुणकी सत्ता, कर्मकी सत्ता इस प्रकार विशेषता कर देती है । उसी प्रकार समवायके एक होनेपर भी प्रत्येक विशिष्ट पदार्थों में रहनेवाला "विशेष्यके भेद होने से विशेषण में भी भेद हो जाता' " इस नियमके अनुसार मेद रखता है । वह भाकाश आदिको छोडकर ईश्वर ही ज्ञानका सम्बन्ध करा देना रूप विशेषताको कर देता है। जैन कहते है कि यदि नैयायिक ऐसा कहेंगे तब तो सामान्यसे समवाय मानना यह आपका पहिला पक्ष गया । प्रत्येक विशेष्य जाति समान विशिष्टप्रकारका समवाय है। इस प्रकार आपने दूसरे पक्षका मालम्बन किया है और उसमें हमारा यह कहना है सुनिये -
विशिष्टः समवायोऽयमीश्वरज्ञानयोर्यदि ।
तदा नानात्वमेतस्य प्राप्तं संयोगवन्न किम् ॥ ७१ ॥
नैयायिक यदि ईश्वरका और ज्ञानका विलक्षण प्रकारका यह दूसरा विकल्परूप समवाय सम्बन्ध मानेंगे तब तो संयोगसम्बन्धके समान समवायको भी मानापन क्यों नहीं प्राप्त होगा ? देखिये, मूतलमें घटका संयोग न्यारा है, पटका संयोग न्यारा है। इसीके समान घटके साथ रूपका समवाय भिन्न है और आकाशके साथ शब्दका समवाय पृथक् है । तथा आमाका ज्ञानके साथ समवायसम्बन्ध अतिरिक्त है। एवं अनेक समवायसम्बन्ध हुए जाते हैं । इस तरह अपने सिद्धान्तके विरुद्ध कहने पर आपको अपसिद्धान्त नामका निमहस्थान प्राप्त होता है ।
न हि संयोगः प्रतिविशेष्यं विशिष्टो नाना न भवति दण्डपुरुषसंयोगात् पटधूपसंयोगस्या भेदाप्रतीतेः ।
आचार्य संयोग नामक दृष्टान्तको पुष्ट करते हैं । प्रत्येक विशेष्यमें विलक्षण होकर विद्यमान संयोगसम्बन्ध अनेक नहीं होता है यह कथमपि नहीं समझना चाहिये अर्थात् संयोगसम्बन्ध अनेक हैं । पुरुषका दण्डके साथ संयोग न्यारा है और कपडे में बंधी हुयी सुगन्धित धूपका कपडेसे संयोग निराला है । वे दोनों संयोग एक नहीं दीख रहे हैं। इस देवदहका छत्री के साथ हो रहे