Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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यह जानता है कि मैं विद्वान् आचायोंके व्याख्यानद्वारा प्रेरित होकर दान, पूजा आदि कर्म कर रहा हूं, आचार्य कहते हैं कि यह मीमांसकों का कहना तब हो सकता है जब कि किसी पुरुषके न बनाये हुए वचन पुरुषोंके प्रयत्न किये बिना ही किसी क्रियामें प्रवृत करानेवाले प्रतीतिसिद्ध हो
किन्तु नहीं प्रतीत हो रहे हैं। क्या बादलोंका गर्जना अपौरुषेय भी होकर अपने वाच्यार्थको रखता हुआ उसमे प्रवृत्ति करा देता है ! किन्तु नहीं | भावार्थ::- जब अपौरुषेय वचन कुछ भी अपने वाच्य अर्थको नहीं रखते हैं, तब प्रवृत्ति क्या करायेंगे ? पदार्थोंके कहनेवाले उन वचनोंकी उत्पत्ति यानी अपने स्वरूपकी प्राप्ति तो सदैव पुरुषोंके व्यापारकी अपेक्षा रखती है। यदि मीमांसक यहां यों कहेंगे कि वेदके वचन तो नित्य हैं, किसी पुरुषने बनाये हुए नहीं हैं । पुरुषका कण्ठ, तालु, आदिका व्यापार पूर्वसे विद्यमान हो रहे उन शब्दोंको केवल प्रकट कर देता है। प्रन्यकार कहते हैं कि यह कहना तो ठीक नहीं है। क्योंकि एकान्तपनले कूटस्थ नित्य शब्द की अभिव्यक्ति नहीं बन सकती है, असम्भव है। इस बातको हम पूर्वप्रकरण में अच्छी तरहसे सिद्ध कर चुके हैं।
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रुनः प्रवर्तकमिति चेत्, स पुरुषः प्रत्ययितोऽ प्रत्ययितो वा ? न तावत्प्रत्ययितोऽतीन्द्रियार्थज्ञानविकलस्य रागद्वेषवतः सत्यवादितया प्रत्येतुमशक्तेः
मीमांसकके ऊपर आचार्यने दो पक्ष उठाये थे । उनमेंसे दूसरे पक्षका खण्डन होगया । अब पहिले पक्षका खण्डन करते हैं कि पुरुषके द्वारा व्याख्यान किया गया अपौरुषेयवेदका वचन श्रोताको यागक्रियामै प्रवृत्ति करा देता है । यदि यह पक्ष ग्रहण करोगे तो हम जैन पूछते हैं कि वह व्याख्यान करनेवाला पुरुष विश्वस्त है या विश्वास करने योग्य नहीं है ? यदि पहिला पक्ष लोगे कि वह व्याख्याता विश्वास करने योग्य है सो ठीक नहीं है, क्योंकि इंद्रियोंके अगोचर सूक्ष्म आदिक अर्थों के ज्ञानसे रहित और रागद्वेषवाले व्याख्याताके सत्यवादीपनका विश्वास नहीं किया जासकता है। निर्णय भी नहीं हो सकता है ।
स्यादयीन्द्रियगोचरेऽर्थेऽनुमानगोचरे वा पुरुषस्य प्रत्ययिता न तु तृती स्थान सङ्क्रान्ते जात्यन्धस्येव रूपविशेषेषु ।
सांव्यवहारिक प्रत्यक्षसे जानने योग्य इंद्रियोंके विषयभूत अर्थ में और हमारे अनुमानसे जानने योग्य अनुमेय पदार्थों उन विषयोंके व्याख्यान करनेवाले पुरुषका विश्वास भी किया जासकता है किंतु जो पदार्थ अनुमान और प्रत्यक्षसे सर्वथा न जाने जाय, केवल तीसरे प्रमाणस्थानपर होरहे आगमसे ही जानने योग्य हैं उन पदार्थों के व्याख्यान करने वाले में विश्वास कैसे भी नहीं किया