Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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क्षय माना है । अत्रः कर्मोके जडसे ही पूरी तरह क्षय हो जाने में क्या प्रमाण है ! बताओ, ऐसी शंका होनेपर यहां ये हम जैन सहर्ष यह कहते हैं किः
क्षीयते क्वचिदामूलं ज्ञानस्य प्रतिबन्धकम् । समग्रक्षयहेतुत्वालोचने तिमिरादिवत् ॥ ४० ॥
आत्माके स्वाभाविक ज्ञानगुणका आचरण करनेवाला प्रतिबन्धक कर्म (पक्ष ) किसी न किसी आत्मामें मूलसे शिखा तक पूरी तरहसे नष्ट हो जाता है ( साध्य ) क्योंकि उस आत्मामें ज्ञानावरणकर्म के पूर्णरूपसे क्षय होनेके कारण सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र उत्पन्न हो गये हैं (हेतु) जैसे कि अञ्जन, सुरमा, ममीरा आदि कारणोंसे नेत्रमें तमारा, चकाचौंध, कामल, आदि दोष सर्वथा नष्ट हो जाते हैं । ( अन्वय दृष्टान्त )
समग्रक्षयहेतुकं हि वक्षुषि तिमिरादि न पुनरुद्भवष्ट वद्वत्सर्वविदो शानप्रतिबन्धकमिति।
जैसे कि तमारा, रतौंध आदि दोषोंके सर्वश्रा नाश करनेवाले कारणों के उपयोग करनेपर नेत्रमें तमारा आदि दोष फिर पैदा होता हुआ नहीं देखा गया है । उसीमकार एकत्ववितर्क अवीचार नामके ध्यानसे सम्पूर्ण घातियों का क्षय हो जानेपर सर्वज्ञके केवलज्ञानको आवरण करनेवाला कर्म पुनः उत्पन्न नहीं हो पाता है। - ननु क्षयमात्रसिद्धावप्यामूलक्षयोऽस्य न सिद्धयेत् पुनर्नयने तिमिरमुद्भवदृष्टमेवेति चेन्न, सदा तस्य समप्रक्षयहेतुत्वाभावात, समग्रक्षयहेतुकमेव हि विमिरादिकमिहोदाहरण नान्यत्, न चानेन इतोरनैकान्तिकता, तत्र तदभावात् ।
मीमांसकोंकी ओरस नेत्रके दृष्टांतको लेकर यहां शंका है कि पूर्वोक्त अनुमानसे फौका फेवल क्षय सिद्ध हुआ। फिर भी जडमूलसे इन कोका क्षय तो सिद्ध नहीं होता है क्योंकि नेत्रोंमें एकवार तमारे आदिके नष्ट होजानेपर फिर मी तमारा, रतोंघ आदि दोष पैदा होते हुए देखे गये हैं। इसी प्रकार सर्वज्ञके भी पुनः ज्ञानावरणदोषका बन्ध होना सम्भव है । आचार्य कहते हैं कि यह कहना तो ठीक नहीं है। क्योंकि संसारी जीवों के ज्ञानावरण आदि कर्माका पूर्णरूपसे ना करनेवाला रलत्रय उत्पन्न नहीं हुआ है। इस कारण कतिपय काँका क्षयोपशम होजाता है । पुनः पन्ध मी होजाता है । किंतु सर्वज्ञके कर्मोंका अनन्त काल तक के लिये क्षय करनेवाले कारण पूर्ण संबर और निर्जरा होगये हैं । इसी प्रकार नेत्रों में एक बार उपशम होनेपर भी पुनः तमारा, रतोंध दोष पैदा हो जाता है। वहां भी उस दोषका पूर्णरूपसे क्षय करनेके कारण अञ्जन आदिफका