Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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सत्त्वायचिन्तामणिः
है किंतु जैसा इसका नाम है तदनुसार वैसा ही इसका अर्थ भी इसमें घट जाता है । जंगली मनुष्य ही हिंसाका पोषण कर सकते हैं, सज्जनपुरुषों के व्यवहारसे इन हिंसकोंका आचार सर्वथा विपरीत है, बाहर फेंकने योग्य है । समीचीन आगमोंकी शिक्षासे अलंकृत होकर विचार करनेवाले सज्जन मनुष्य चाहे जिस क्रियामे केवल धर्मके नामसे ही कल्याणकारीपन और अधर्म शब्दके कहनेसे ही किसी भी अच्छी क्रिया में अमंगलकारीपनका विश्वास नहीं करलेते हैं, क्योंकि अविचारी पुरुषोंके द्वारा उन्चारण किये गये धर्मशब्दको कल्याण करने के सश्र और अपशब्द बोलनेसे दुःखकारीपनेकी व्याप्ति नहीं है, इस उक्त नियममें व्यभिचार देखा जाता है। कहीं कहीं पाप करनेवाले कमैंमें भी धर्म शब्दका प्रयोग देखा गया है, जैसे कि मांस, मद्य, बेचनेवालोंके यहां महापापके कारण मांसका देना भी धर्म कह दिया जाता है। उसी प्रकार शिकार खेलनेवाले, वेश्यासवन करनेवाले, डांका डालनेवाले, पापियोंने भी अपने इष्ट व्यसनोंको धर्मका रूप दे रखा है, और कहीं कहीं अच्छे पुण्यवर्धक कार्योंको भी लोग अधर्म शब्दसे कह देते हैं, जैसे समाविमरण करनेवाला आत्मघात करता है अतः पापी है, बुरा काम करता है । शठके साथ सज्जनता करना, हिंसकपशुफे साथ दयाभाव करना भारी अपराध है, इत्यादि पकारसे भी कोई कोई भाषण करते है । उन अच्छे कर्जाको कर रहे व्यक्तियोंमें पाप करना शब्द प्रयुक्त होरहा है यह व्यभिचार हुआ । इस कारण हिंसा पोषक यज्ञ केवल थोडेसे आदमियों के द्वारा धर्म कहे जानेसे वास्तव कल्याणकारी नहीं होसकता है ।
सर्यस्य धर्मव्यपदेशः प्रतिपद्यते स श्रेयस्करो नान्य इति चेत् । तर्हि न यागः श्रेयस्करस्तस्य सौगतादिभिरधर्मस्वेन व्यपदिश्यमानत्वात् ।
यदि यहां मीमांसक यह कहें कि सम्पूर्ण जीव जिसको धर्मशब्दसे व्यवहार किया हुआ जानते हैं वह अवश्य कल्याणकारी है, अन्य डाका डालना आदि नहीं 1 क्योंकि डांका डालनेको सभी लोग धर्मकार्य नहीं कहते हैं । आपके इस प्रकार माननपर तो आपका यज्ञ भी कल्याणकारी नहीं हो सकता है। क्योंकि बौद्ध, चार्वाक, जैन आदि मतानुयायियोंने इस यज्ञको अधर्म शब्दसे निरूपण किया है । अतः सबके द्वारा धर्म शब्दकी प्रवृत्ति यझमें नहीं हुई।
सकलैदवादिभिर्यागस्य धर्मत्वेन व्यपदिश्यमानत्वाच्छ्रेयस्करत्वे सर्वैः खारपटिकैः सधनवधस्य धर्मत्वेन व्यपदिश्यमानतया श्रेयस्करत्वं किं न भवेत् , यतः श्रेयोर्थिनां स विहितानुष्ठानं न स्यात् ।
पुनः यदि मीमांसक यहां यों कहेंगे कि वेद के अनुसार चलनेवाले मीमांसक, वैशेषिक,शाक्त भैरवमक्त और पौराणिक सब ही विद्वानोंने यज्ञको धर्मरूपसे प्ररूपण किया है, अतः यज्ञ कल्याण करनेगला धर्म है । ऐसा होते सन्ते तो इसपर हम जैन भी कहते हैं कि खरपटमतके अनुयायी