Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्षचिन्तामणिः
सर्वसम्मन्धि तदनातासिद्ध, किंचि ज्ञातुमशक्यत्वात्, न च सर्वक्षस्तरोद्भास्ति तत्प्रतिषेपविरोधात् ।
मीमांसकोंका सब जीवों के सम्बन्ध होरहे ज्ञापक प्रमाणका न दीखनारूप हेतु वादी प्रतिवादीके द्वारा जाना नहीं जा सकता है। अतः अज्ञात होकर असिद्ध हेखाभास है । कुछको जानने काले अस्पज्ञ संसारी जीवोंके द्वारा सब जीवोंसे सम्बन्ध रखनेवाले ज्ञापकोंका अनुपलम्म जाना नहीं ना सकता है । यदि आपने सब जीवोंके प्रमाणोंका प्रत्यक्ष करनेवाला कोई ज्ञाता माना है, यह सो ठीक नहीं है क्योंकि इससे तो सर्वज्ञ सिद्ध हो जाता है और आप सर्वज्ञको मानकर फिर उसका निषेध करेंगे तो आपके वचोंमें पूर्वापरविरोध हो जावेगा।।
षभिः प्रमाणैः सर्वज्ञो न वार्यत इति चायुक्तम् । यसात्
यदि मीमांसक यों कहें कि प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, अर्थापत्ति, उपमान और अभाव इन छह प्रमाणोंसे सम्पूर्ण पदार्थोंका ज्ञान करनेवाले सर्वज्ञका खण्डम इम नहीं करते हैं । अनुमान या आगमसे अनेक विद्वान् परोक्षरूपसे सम्पूर्ण पदार्थोंको जान लेते हैं यह कोई कठिन बात नहीं है, किंतु एक मुख्यप्रत्यक्षद्वारा युगपत् सर्व जगत्को विशदरू से प्रत्यक्ष करनेवाले सर्वज्ञको हम नहीं मानते हैं । आचार्य कहते हैं कि यह मीमांसकका कहना युक्तियोंसे रहित है । कारण कि
सर्वसम्बन्धिसर्वज्ञज्ञापकानुपलम्भनम् । न चक्षुरादिभिर्वेयमत्यक्षत्वाददृष्टवत् ॥ १६ ॥
एक केवलशानरूप प्रत्यक्षके द्वारा सम्पूर्ण पदार्थोके प्रत्यक्ष करनेवाले सर्वज्ञका नास्तिपन सिद्ध करनेके लिये दिया गया सब जीवोंके पास ज्ञापकप्रमाणोंका अनुपलम्मरूप हेतु विचारा चक्षु, मन आदि इंद्रियोंसे तो जाना नहीं जाता है। क्योंकि सर्वज्ञके झापकोंका नहीं दीखना अतीन्द्रिय विषय है। जैसे कि पुण्य, पाप, इंद्रियोंसे नहीं दीखते हैं । अतः आप मीमांसकोंके हेतुकी सिद्धि प्रत्यक्ष प्रमाणसे तो हो नहीं सकती है, विना हेतुके जाने साध्यको नहीं जान सकते हैं।
नानुमानादलिंगत्वात्कार्थापत्त्युपमागतिः । सर्वस्यानन्यथाभावसादृश्यानुपपत्तितः ॥ १७ ॥
आपके ज्ञापकानुपलम्मन हेतुको कोई अनुमान से भी नहीं जान सकता है क्योंकि उस हेतुको साध्य बनाफर जानने के लिये अबिनाभाव रखनेवाला कोई दूसरा हेतु नहीं है। अतीन्द्रिय साध्यके साथ व्याप्तिका ग्रहण करना कठिन है । जब ज्ञापकानुपलम्भन हेतु अनुमानसे ही नहीं