Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
यदा च कचिदेकत्र तदेतन्नास्तिता मतिः ।
नैवान्यत्र तदा सास्ति चैवं सर्वत्र नास्तिता ? ॥ २४ ॥
जिस समय किसी एक आत्मामें इस ज्ञापकोपलम्मकी नास्तिलाका ज्ञान होगा उस समय दूसरी आत्माओं में उसके नास्तिपनका आपको ज्ञान नहीं हो सकेगा । ऐसी अवस्था सभी आत्मापोपलम्भका नास्तिपन कहां सिद्ध हुआ ? | क्रम क्रमसे जिस आत्मा को जानते जावोगे उसीमें नास्तिपन सिद्ध कर सकोगे ।
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प्रमाणान्तरतोऽप्येषां न सर्व पुरुषग्रहः । ताल्लेङ्गादेरसिद्धत्वात् सहोदीरितदूषणात् ॥ २५ ॥
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इन मीमांसकों के यहां ज्ञापकोपलम्भरूप निषेध्य के आधारभूत सम्पूर्णं पुरुषोंका ग्रहण अन्य अनुमान, अर्थापति आदि प्रमाणोंसे भी नहीं हो सकता है क्योंकि उनके अविनाभाव, सादृश्य आदि ret रखनेवाले हेतु आदिक सिद्ध नहीं हैं । अनेक पुरुषको क्रमसे प्रत्यक्ष जाननेमें जो दूषण आते हैं वही दोष उन पुरुषोंको जाननेमें जो हेतु या सादृश्य दिये जायेंगे उनमें भी साथ साथ आयेंगे । अर्थात् अनेक पुरुषोंके साथ व्याप्ति रखनेवाला निर्दोष कोई हेतु आपके पास नहीं है, सादृश्य आदि भी नहीं हैं ।
तज्ज्ञापकोपलम्भोऽपि सिद्धः पूर्वं न जातुचित् ।
यस्य स्मृतौ प्रजायेत नास्तिताज्ञानमञ्जसा ॥ २६ ॥
मीमांस
है
अभावप्रमाणकी उत्पत्ति प्रतियोगीका स्मरण करना भी आपने कारण माना है। कोंके मत सर्वज्ञके उन ज्ञापकप्रमाणका उपलम्भ होना पहिले कभी सिद्ध नहीं हो चुका जिसका कि स्मरण करनेपर ज्ञापकोपलम्भकी नास्तिताका ज्ञान ठीक ठीक हो जावे । अर्थात् पूर्वकालमै जाने हुएका ही हम वर्तमान में स्मरण कर सकते हैं। मीमांसकों को ज्ञापकप्रमाण ज्ञात ही नहीं हैं तो अभाव जानते समय उनका स्मरण भी नहीं हो सकता है ।
तदेवं सदुपलम्भकप्रमाणपञ्चकवदभावप्रमाणमपि न सर्वज्ञज्ञापकोपलम्भस्य सर्वप्रमासंबंधितो संभवसाधनं, तत्र तस्योत्थानसामग्य भावात् ।
उस कारण इस प्रकार अब तक सिद्ध हुआ कि पदार्थोंकी सत्ताको जाननेवाले प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, और अर्थापति इन पांच प्रमाणोंकी प्रवृत्ति ज्ञापकानुपलम्भन हेतुके जानने जैसे सिद्ध नहीं हुई उसी प्रकार अभावनर्माण भी सम्पूर्ण ममाताओं ने सम्बन्धित होरहे सर्वज्ञ
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