Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थभिन्तामणिः
भी नहीं ला सकता है । बडे बडे मुनींद्र जब सर्वज्ञकी स्तुति करते थे तभी मगवान् मोक्षमार्गका उपदेश निर्माण करते थे।
तत एवोपयोगात्मकस्यात्मनः श्रेयसा योक्ष्यमाणस्य विनेयमुख्यस्य प्रतिपिरसायां सूत्रं प्रवृत्तमित्युच्यते ।
उसही कारणसे हमने पूर्ववार्तिकमे कहा है कि ज्ञानदर्शनापयोगी आमाको कैवल्यप्राप्तेरूप मोक्षसे भविष्यमें संयुक्त होनेवाले शिष्यजनोंमें प्रधान गणघरदेवकी तत्त्वोंके जाननेकी बलवती इच्छा होनेपर यह सूत्र प्रवृत्त होता है । अर्थात् शिष्योंकी जानने, सुननेकी विशेष इच्छा होनेपर ही तीर्थकर सर्वज्ञने यथार्थ सत्य सूत्रका अर्थरूपसे प्रतिपादन किया है।
सतोऽपि विनयमुख्यस्य यथोक्तस्य प्रतिपित्साभावे श्रेयोधर्मग्रतिपत्तेरयोगात् प्रतिप्राइकत्वासिद्धेरिदानी यावत्सूत्रप्रवर्त्तनाघटनात् । प्रवृत्तं चेदं प्रमाणभृतं सूत्रं तस्मात्सिद्धे यथोक्त प्रणेतरि यथोदितप्रतिपित्सायाञ्च सत्यामिति प्रत्येयम् ।।
भविष्यमें कल्याणसे युक्त होनेवाले ज्ञानोपयोगात्मक प्रधान शिष्योंके विद्यमान होनेपर भी यदि उनकी समझनेकी इच्छा नहीं है तो उनको कल्याणकारी मोक्षसाधक धर्मका अद्धान नहीं हो सकता है । ऐसी दशा ये उपदेशको ग्रहण करनेवाले भी सिद्ध नहीं होते जाते हैं और विना इच्छाके जब उन्होंने भगवान् का उपदेशही ग्रहण नहीं किया तो आज इस समय तक इस सूत्ररूप उपदेशका प्रवर्तन भी नहीं बन सकेगा, किन्तु सूत्रका उपदेश बराबर आ रहा है । अतः उक्त व्यतिरेकन्याप्तिसे यह सिद्ध हुआ कि आज तक यह प्रमाणभूत सत्यसूत्र धाराप्रवाहसे चला आ रहा है । उस कारण वातिक उक्ति अनुसार पहिले कहीं गयी। यह सूत्र मुनींद्रोंसे स्तवनीय हो रहे सर्वज्ञ, वीतराग तीर्थकरका ही बनाया हुवा है । और तीर्थकरने भी पहिले कही गयी मोक्षमार्गके चाहनेवाले विनीत शिष्यजनोंकी जाननेकी प्रबल इच्छा होनेपर ही अपनी दिव्यभाषासे उस सूत्रका प्रणयन किया है । यह दृढरूपसे निश्चय रखना चाहिये ।
नन्वपौरुषेयाम्नायमूलत्वेऽपि जैमिन्यादिसूत्रस्य प्रमाणभूतत्वसिद्धेर्नेदं सर्वज्ञवीतदोषपुरुषप्रणेतकं सिद्धयतीत्यारेकायामाह ।
यहां मीमांसकोंका आक्षेपसहित कहना है कि मोक्षमार्गफे निरूपण करनेवाले " अथातो धर्म व्याख्यास्यामः " “यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः" इत्यादि जैमिनि आदि ऋषियोंके सूत्र मी अनादि आम्नायसे चले आ रहे अपौरुषेयवेदको आधार मानकर ही बनाये गये हैं । तभी उनमें प्रमाणिकपना सिद्ध है । अतः आप जैनोंके इस सूत्रका सर्वज्ञ वीतराग तीर्थकर पुरुषसे बनाया जानापन सिद्ध नहीं हो पाता है। यदि आप अपने सूत्रको प्रमाणभूत सत्य सिद्ध करना चाहते हैं तो