Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
तीनोंको मोक्षमार्ग बतानेवाला पहिला सूत्र प्रत्यक्ष, अनुमान और आगमनाधित नहीं हैं।
__ यथा बाधुनात्र चास्मदादीनां प्रत्पशादि न तद्बाधक तथान्यत्रान्यदान्येषां च विशेषामावादिति सिद्धं सुनिश्चितासम्भवद्वाधकत्वमस्य तथ्यतां साधयति, सा च सूत्रत्वं, तस्सर्पशवीतरागप्रणेतकयमिति निवद्यम् प्रणेतुः साक्षात्पद्धाशेषतत्वार्थतया प्रक्षीणकल्मषतया च विशेषणम् ।
ऐसी व्यवस्था होनेपर कोई कहै कि आज कल यहाँके मनुष्यों के प्रत्यक्ष आदिक भले ही त्रित्वम बाधक न हों किंतु देशांतर कालांतरके विशिष्ट पुरुषोंके प्रत्यक्ष आदि प्रमाण तो मोक्षमार्गके पावक होजाग श्रीशिवानंद स्वामी कहते है कि यह ठीक नहीं है क्योंकि जिस प्रकार इस देशमै तथा इस कालमें हम लोगों के प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम ये तीन प्रमाण उस सम्यग्दर्शन आदि त्रिकके मोक्षमार्गपनेमे बाधक नहीं है उसी प्रकार भिन्नदेश, भिन्नकालके अन्यजनोंके भी प्रत्यक्ष भादिक प्रमाण उस त्रित्वके वाधक नहीं हैं । क्योंकि इस काल, इस देश के, हम लोगोंसे, उस काल, उस देशके जानने वाले मनुष्यों का मोक्षमार्ग जानने में कोई अंतर नहीं है। देश, कालके बदल जाने से प्रत्यक्ष आदिक ज्ञानकी जातियोंमें फेर फार नहीं होता है । इस प्रकार सूत्रमें बाधकप्रमाणों के असम्भव हो जानेका निश्चय सिद्ध होता हुआ इस सूत्रको सत्यपनेकी सिद्धि करा देता है। और जब सूत्र सत्य सिद्ध हो चुका तो सत्यतासे वह सूत्र सर्वज्ञ, वीतराग का बनाया हुआ है यह भी ज्ञात हो जाता है । इस प्रकार आदिसूत्रको बनानेवाले मोक्षमार्गके नेताका केवलज्ञानके द्वारा सम्पूर्ण तत्त्वोंका प्रत्यक्ष आन चुकना और पाति फौका नाश कर चुकना थे दोनों विशेषण पूर्व वातिको दिये हुए दोषरहित सिद्ध हैं क्योंकि कमौका क्षय करनेवाले सर्वज्ञ वीतराग ही अर्थरूपसे सत्यसूत्रों को बना सकता है।
मुनीन्द्रसंस्तुत्यस्वविशेषणं च विनेयमुख्यसेव्यतामंतरेण सतोऽपि सर्वज्ञवीतरागस्य मोक्षमार्गप्रणेतृत्वानुपपत्तेः । प्रतिग्राहकामावेऽपि तस्यं तत्प्रणयने अधुनायावत्प्रवननानुपपरे।
तथा गम्भीर अर्थ के प्रतिपादक सूत्रको बनानेवाले सर्वज्ञका मुनीन्द्रोंसे भली प्रकार स्तवन किये जानारूप विशेषण भी निर्दोष सिद्ध है। क्योंकि प्रधान शिष्योंसे सेवा किये गये बिना वीतराग भी होकर परमगुरु सर्वज्ञदेव मोक्षमार्गका प्रणयन नहीं कर सकते हैं। भगवान्के उपदेश को झेलनेवाले विनीत बुद्धिमान् शिष्योंके न होते हुए भी यदि भगवान् उस मोक्षमार्गके प्रणयन करनेवाले सूत्रका उपदेश दे देते तो धाराप्रवाहसे उपदेशका आज तक प्रवर्तन हो नहीं सकता था, अर्थात् विना ठीक ग्रहण करने वाले शिष्योंके उस उपदेशको आज तक कोई