Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
शुम्पदायाच्यक छेद विशेषादधुना नृणाम् । सद्गोत्राथुपदेशोऽत्र यद्वत्तद्विचारतः ॥ ६॥ प्रमाणभागमः सूत्रमाप्तमूलत्वसिद्धितः ।
लैङ्गिकं चाविनाभाविलिंगात्साध्यस्य निर्णयात् ॥ ७ ॥ आज तकके मनुष्योंको गुरुपरिपाटीके अनुसार विरोधरहित चले आये हुए उस सूत्रके अर्थका विच्छेद नहीं हुआ है, जिस प्रकार कि वृद्धपरम्परापूर्वक पंच लोगोंके विचारसे निश्चित होकर चली आयी हुई समीचीन अग्रवाल, खण्डेलवाल, पद्मावतीपुरवाल आदि जातियोंके या पाटणी, सिंह, कासालीवाल आदि गोत्रोंके उपदेश माननेमें यहां कोई बाधा नहीं है, उसी प्रकार प्रकृत सूत्रके भी नहीं टूटी हुई समीचीन प्राचीनधारासे चले आनमें कोई विरोध नहीं है । यह सूत्र प्रामाणिक सत्यवत्ता पुरुषोंको आधार मानकर प्रसिद्ध हुआ है, उस कारण आगम प्रमाणरूप है, और यह सूत्र हेतुसे उत्पन्न हुआ अनुमान प्रमागरूप भी है, क्योंकि समीचीन व्याप्तिको रखनेवाले मोक्षमार्गख-हेतुसे सम्यग्दर्शन आदि तीनोंकी एकतारूप साध्यका निश्चय किया गया है। वैसे तो शब्दरूप सूत्र पौद्गलिक है किंतु उस शब्दसे अनादि-संकेतद्वारा पैदा हुआ क्ता और श्रोताका ज्ञान चैतन्यपदार्थ है। यद्यपि शब्द और ज्ञानमें जड तथा चेतनपनेसे महान् अंतर है, फिर भी ज्ञानके पैदा करनेमे शब्दही प्रधान कारण है, अतः शब्द और ज्ञानका धनिष्ट संबंध है । प्रकृत, सूत्रके ज्ञानरूप भावसूत्रको अनुमान, आगम, प्रमाणरूप माना है।
प्रत्यक्ष प्रमाण यद्यपि शब्दयोजनासे रहित है, फिर भी दूसरों को समझानेके लिए उस ज्ञानका स्वरूप शब्दके द्वारा कह दिया जाता है, जैसे 'यह घट है। यह प्रत्यक्षज्ञानका उल्लेख है । इसी प्रकार ज्ञानरूप पदाथार्नुमानको भी शब्दके द्वारा कहना पडता है। आगममें तो अनेक अंशोमें शब्दयोजना लगती ही है। मावार्थ-सूत्र तो ज्ञानरूप ही है, चाहे केवलज्ञानियोंके प्रत्यक्ष प्रमाण स्वरूप हो या गणधर आदि ऋषियों के अनुमानप्रमाण और आगमप्रमाणरूप होवे, किन्तु ज्ञानको ज्ञानसे साक्षात् जानना सर्वज्ञका ही कार्य है, संसारी जीवोंको शब्दकी सहायता लिये विना कठिन प्रमेयका समझना और समझाना अशक्यानुष्ठान माना गया है । उक्त वार्षिकोंका विद्यानन्द स्वामी अब भाष्य करते हैं।
प्रमाणमिदं सूत्रमागमस्तावदाप्तमूलत्वसिद्धेः सद्गोत्राद्युपदेशवत् ।
प्रथमही पक्ष, हेतु, दृष्टान्तरूप अवयवोंसे अनुमान बताकर सूत्रको अपमप्रमाणपना सिद्ध करते हैं, यह सूत्र आगमप्रमाण है ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि आप्तपुरुषोंको मूलकारण मानकर आजतक