Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
__ “नेदं सर्वशे सिद्धे प्रवृत्तं तस्स बायकानुपलम्भादभावसिद्धे" रिति परस्य महामोहविचेष्टितमाचष्टे
यहां किसीका नवीन पूर्वपक्ष है कि "यह सूत्र सर्व पदार्थोका प्रत्यक्ष करनेवाले सर्वज्ञके सिद्ध होनेपर प्रवृत्त हुआ है यह जैनोंका कहना ठीक नहीं है कारण कि उस सर्वज्ञका ज्ञान करानेवाला कोई प्रमाण माना नहीं गया है। अतः ज्ञापक प्रमाण नहीं दीखनेसे सर्वज्ञका अभाव सिद्ध है। इस प्रकार दूसरे सर्वज्ञाभाववादी मीमांसकका कहना अत्यंत गाढमोहसे प्रेरित होकर चेष्टा करना है । इसी बातको आचार्य कहते हैं
तत्र नास्त्येव सर्वज्ञो ज्ञापकानुयलम्भनात् ।
व्योमाम्भोजवदित्यतत्तमस्तमविजृम्भितम् ॥ ८ ॥ उस प्रकरणों कोई कहता है कि "आकाशके कमलके समान सर्वज्ञका ज्ञापकमाण न होनेसे कोई भी सर्वज्ञ नहीं है " । इस प्रकार का यह अयुक्तबकवाद केवल बढे हुए कु-ज्ञान और मिथ्यात्व नामक अन्धकारकी कुचेष्टा ( हरकत ) है।
"नास्ति सर्वज्ञोज्ञापकानुपलब्धेः खपुष्पवत् इति नुवन्नात्मनो महामोहविलासमावेदयति।"
"सर्वज्ञ नहीं है (प्रतिज्ञा) क्योंकि उसको सिद्ध करनेवाला कोई ज्ञापक प्रमाण नहीं दीलता है ( हेतु ) जैसे कि आकाशके फूलका (अन्वयदृष्टान्त)" इस प्रकार कहनेवाला अपने महाभूढपनेमे होनेवाली चेष्टा करनेकी सूचना दे रहा है।
यस्मादिदं ज्ञापकमुपलभ्यत इत्याह;
सर्वज्ञामाववादीके द्वारा सर्वज्ञके नास्तिस्य सिद्ध करनेमें दिया गया ज्ञापक प्रमाणका न दीखनारूप हेतु विचारपक्षमें न रहनेसे असिद्ध हेत्वाभास है, जिस कारणसे कि सर्वज्ञका ज्ञान करानेवाला यह अनुमान प्रमाण देखा जा रहा है । इसी बातको आचार्य विशदरूपसे कहते हैं
सूक्ष्माधर्थोपदेशो हि तत्साक्षात्कतपूर्वकः । परोपदेशलिंगाक्षानपेक्षावितथत्वतः ॥९॥
आकाश, परमाणु, धर्म-द्रव्य आदि सूक्ष्म पदार्थोंका और क्षीरसमुद्र, सुमेरुपर्वत आदि देशव्यवहित वस्तुओंका तथा महापद्म, रामचन्द्र, शंख, भरतचक्रवर्ती प्रभृत्ति वर्तमानकालसे व्यवहित पदार्थीका यथार्थ उपदेश करना तो उन संपूर्ण पदार्थोंके विशवरूपसे प्रत्यक्ष करनेबारे सज्ञको कारण मानकर प्रवृत्त हुआ है । प्रतिज्ञा ) क्योंकि दूसरोंके उपदेश, अविनाभावी हेतु, औ इंद्रियोंकी अपेक्षा न रखता हुआ वह उपदेश सत्यार्थ है। ( हेतु)