Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
निर्णीत किन गया है, जो किसी विषय प्रति करनेवाले कारणों में कुछ विशेषताओंको स्थापन कर देवें, जैसे कि छोटे छोटे अक्षरोंके पढनेमें चक्षुका अनुग्रह करनेवाला उपनेत्र ( चश्मा ) होता है, अन्धे मनुष्यको चश्मा सहकारी कारण नहीं है, तथा रूपकी तरह रसको भी जानने में चक्षुका सहकारी चश्मा नहीं हो सकता है, कारण कि रस, गन्ध, आदि चक्षुक विषय ही नहीं है। इसीपकार परमाणु, पुण्य, पाप, भूत भविष्यत् कालके पदार्थ तो इन्द्रियोंके विषय नहीं हैं, अतः अविषयमें प्रवृत्ति करनेके लिये योगसे पैदा हुआ पुण्यविशेष विचारा महेश्वरकी इन्द्रियों में सहकारी कारण होकर कुछ विशेषताको नहीं ला सकता है, यों वह बात घरित नहीं होती है। यदि आप फिर महेश्वरकी उन इन्द्रियोंका अपने विषयोंसे बाहिर भी प्रवर्तन करना समाधिसे पैदा हुए पुण्यविशेषसे सहकृत अनुग्रह है ऐसा मानोगे, तब तो सम्पूर्ण रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द, सुख, दुःख, आदिको ग्रहण करनेवाली एक ही इन्द्रिय इष्ट कर लो, उसमें अनेक कारणोंसे अतिशय पैदा होता जावेगा, अकेली चक्षुइंद्रिय ही उस अतिशयके बलसे अपने विषय नहीं ऐसे रस, गन्ध, आदिको भी प्रवृत्ति कर लेनेगी, अतः आप नैयायिक पांच छह इन्द्रियोंकी कल्पना भी क्यों करते हैं ! ।
सत्यमन्तःकरणमेकं योगजधर्मानुगृहीतं युगपत्सर्वार्थसाक्षात्करणक्षममिष्टमिति चेत्, फथमणोर्मनसः सर्वार्थसंबन्धः सकृदुपपद्यते ? दीर्घशष्कुलीभक्षणादौ सकृच्चक्षुरादिभिस्तत्संबन्धप्रसक्ते, रूपादिज्ञानपंचकस्य क्रमोत्पत्तिविरोधात् । क्रमशोऽन्यत्र तस्य दर्शनादिह क्रमपरिकल्पनायो सार्थेषु योगिमनासम्बन्धस्य क्रमकल्पनास्तु ।
नैयायिक कहते हैं कि आप जैनोंका कहना ठीक है, हम नैयायिक चित्तकी एकाग्रतासे उत्पन्न हुए पुण्यसे सहकृत अन्तरंगकी इन्द्रिय-मनको एक समयमें सम्पूर्ण अर्थोके प्रत्यक्ष करनेमें समर्थ मानते ही है। आचार्य कहते हैं कि यदि ऐसा कहोगे तो हम जैन आपसे पूंछते हैं कि परमाणुके बराबर छोटेसे मनका एक ही बादमें त्रिलोक, त्रिकाल के सम्पूर्ण पदार्थोके साथ सम्बन्ध कैसे सिद्ध हो सकता है ? बताओ जहां साधारण लोगोंकों पांचों इन्द्रियोंके ज्ञानकी योग्यता है ऐसे ( स्वस्ता) कचौडी, तथा पके हुए पान आदिके खाते समय भी पांचों ही ज्ञान एक समयमें नहीं माने गये हैं, ( खस्ता ) फचौड़ी या पापड खाते समय उसफा रूप आखाँसे दीखता है, रसना इन्द्रियसे रस चखा जा रहा है, नाकसे उसकी सुगन्ध आरही है, स्पर्शन इन्द्रियसे उष्ण स्पर्श जाना जाता है तथा कर्णेन्द्रियसे कुरकुर मनोहर शब्द भी सुनायी पड़ता है। ऐसी दशामे भी हम और आपने एक समयमै वहां पांचों ज्ञान नहीं माने है किन्तु क्रमसे शीघ्र पैदा हुए पांच ज्ञान पांच समयोंमें माने हैं। यों एक साथ उनके सम्बन्ध हो जानेका प्रसङ्ग आवेगा यदि आप परमाणुके यरोबर आकारबाले छोटेसे मनका अनेक अर्थों के साथ एक समयमें साक्षात्संबन्ध मान लोगे तो कचौडी खाते समय