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जैन-पुरातत्त्व
जंमि पएसे गहिया, भिक्खा मा तत्थ कोई चलणेहि, ठाहि ति रि (२)-यणेहिं, को थूभो कुमरेण' भत्तीए ॥ यूभ विषयक और भी दो-एक उल्लेख ग्रन्थमें आये हैं ।
इसी प्रकार जैनकथा साहित्यमें थूभ-स्तूप विषयक प्रमाण मिलते हैं । इनका अध्ययन वांछनीय है।
अष्टापद पर्वतपर इन्द्र द्वारा तीन स्तूप स्थापित करनेका उल्लेख श्रीजिनप्रभसूरि अपने "विविधतीर्थकल्प'में इस प्रकार करते हैं
रखत्रयमिव मूर्त स्तूपत्रितय चित्रितयस्थाने । यत्रास्थापयदिन्द्रः स जयत्यष्टापदगिरीशः ॥
प्राचीन तीर्थमालात्रोंमें कई स्तूपों--थभोंकी चर्चा है ।
यों तो पुरातन विश्वसनीय जैन-स्तूपर मथुरामें उपलब्ध हुए हैं; परन्तु मेरा विश्वास है कि ईसवी पूर्व छठवीं शती मगधमें बना करते थे। भगवान महावीरके निर्वाण-स्थानपर एक स्तूप बनवाये जानेका उल्लेख जैन-साहित्यमें आता है । पावापुरीसे एक मील दूर आज भी एक भग्न स्तूप विद्यमान है। ग्रामीण जनताका विश्वास है कि यही भगवान महावीरका निर्माण स्थान है। आचार्य श्रीजिनप्रभसूरिजीने विविधतीर्थ3 कल्पान्तर्गत अपापाबृहत्कल्पमें जो उल्लेख किया है, वह ऐतिहासिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है।
तहा इत्थव पुरीए कत्तियअमावसारयणीए भयवनो निवाणटाणे मिच्छद्दिठ्ठीहिं सिरिवीरथूभट्ठाणठावियनागमंडवे अज वि चाउवण्णिय
धर्मोपदेशमाला, पृ० ८८ । धर्मोपदेशमाला-ग्रन्थमें इसे "दिव्वमहाथूम" कहा गया है। पृष्ठ ४४।
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