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खण्डहरोंका वैभव
कहा जाता है कि इसका निर्माण विशिष्टशैलीसे हुआ है । पुष्यनक्षत्र आनेपर ही कार्य किया जाता था । आज भी गढ़ा में तान्त्रिकों का अच्छा जमाव व प्रभाव है । एक पुरातन वापिका भी है । यहाँ खुदाई अत्यावश्यकता है ।
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बाजनामठ
जबलपुर से प्रायः ६ मील दूर, संग्रामसागर के किनारेपर बने हुए भैरवमन्दिरको ही बाजनामठ कहते हैं । कहा जाता है कि यह भी सिद्ध स्थान है । इसका निर्माण गोंड राजा संग्रामशाहने करवाया था, वे भैरवके अन्यतम उपासक थे । एक बार किसी तान्त्रिकने षड्यन्त्र कर, राजाका बलिदान देना चाहा था, पर राजा ठीक समयपर चेत गया, अतः उनका प्रयत्न विफल रहा। भैरवका मन्दिर गोंड स्थापत्यका प्रतीक है । इसका गोल गुम्बज प्रेक्षणीय है | नवरात्र में यहाँपर दूर-दूर के तान्त्रिक आते हैं । यह स्थान एकान्त में होनेके कारण कभी-कभी भयजनक लगता है । पासमें मुर्दे भी जलाये जाते हैं । इस स्थानकी सुरक्षापर समुचित ध्यान देना वांछनीय है ।
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इसी संग्रामसागरके ठीक मध्य भागमें आमख़ास नामक एक स्थान पड़ता है । यह एक प्रकार से छोटा-सा द्वीप ही है । महल बना हुआ है । एक आमका वृक्ष लगा है । इसीसे इसका नाम आमख़ास पड़ गया है, पर मूलत: वह दीवानेख़ास ही रहा होगा । जबलपुर के स्व० बाबू ऋषभदास भूरा तो, जबलपुर के समस्त खंडहर स्थानोंके दैनिक पर्यटक ही थे, मुझे बता रहे थे कि आमखासवाला महल नीचे तीन तलोंतक गहरा है । बैठनेको बड़े-बड़े हॉल हैं । कभी-कभी विषधर भुजंग भी निकलता है । इस प्रकारकी इमारतें कलचुरियोंके समय भी बना करती थीं, सर्वसाधारण को इन बातों का पता कम रहता था । बिलहरी में ऐसी वापिका मैं स्वयं देख चुका हूँ, जो तीन खंडों में विभाजित है ।
Aho! Shrutgyanam