Book Title: Khandaharo Ka Vaibhav
Author(s): Kantisagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 385
________________ ३६१ मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व कर सकूँ । विशुद्ध पुरातत्त्व और इतिहासकी दृष्टि से देखा जाय तो बिलहरीका अस्तित्व कलचुरि कालसे ही ज्ञात है। इतः पूर्व इसकी स्थिति कैसी रही होगी, आवश्यक साधनोंके अभावमें कुछ भी नहीं कहा जा सकता। पुरातन जो अवशेष बिलहरीके खंडहरोंमें बिखरे पड़े हैं, उनसे भी यही ज्ञात होता है कि १००० वर्ष के ऊपर बिलहरीका इतिहास नहीं जा सकता। मान लीजिए यदि इतः पूर्व इसका सांस्कृतिक या राजनैतिक विकास हुआ भी होता तो तात्कालिक लेखोंमें या ग्रन्थस्थ उल्लेखोंमें इसका नाम, किसी न किसी रूपमें अवश्य रहता । जब त्रिपुरीका उल्लेख पाया जाता है तो इतनी विस्तृत व उन्नत नगरी कदापि अनुल्लिखित न रहती। ___ इतने विवेचनके बाद प्रश्न यह उपस्थित होता है कि पुष्पावती, बिलहरीका नाम कैसे पड़ा और क्यों पड़ा; यदि पुष्पावती नाम न पड़ता तो माधवानल-कामकन्दलाका सम्बन्ध भी इस नगरीसे न जुड़ता। यह प्रश्न जितना सरल है उतना उत्तर सुगम नहीं। इसपर अधिक ऊहापोह किया जा सके वैसी साधन-सामग्री भी उपलब्ध नहीं है। परन्तु हाँ, धुंधला प्रकाश मिलता है, इससे कुछ कल्पना आगे बढ़ती है । उपर्युक्त पंक्तियोंमें मैंने तथाकथित आख्यानक हिन्दीमें भी मिलनेका सूचनात्मक उल्लेख किया है, उसमें माधवानन्द-माधवानलके चलते चलते बांधवगढ़ (रोवाँ ) आनेकी सूचना है, नर्मदा नदीके तटपर बसी कामावतीका व होरापुर का उल्लेख है। रीवाँ बिलहरीसे संभवतः ७५ मील होगा । और हीरापुर सागर ज़िलेमें ५० मील उत्तरमें अवस्थित है। इसके निकट 'बुन्देलखंडकी सीमापर है रत्नाकर सागर जिला पन्ना हीराखांन हीरा रचित सरोजहू, हीरापूरे सिरान, सागर-सरोज, पृ० १५५, Aho! Shrutgyanam

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