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खण्डहरोंका वैभव ___बिलहरीमें किंवदन्ती प्रचलित है कि पुहपावती इसका प्राचीन नाम है, और किसी समय इसका विस्तार १२ कोसतक था । स्व. डा० हीरालाल' आदि कुछ विद्वान् बिलहरी और पुष्पावतीको एक ही नगरी माननेकी चेष्टा करते नज़र आते हैं। परन्तु इस किंवदन्तीका आधार क्या है ? अज्ञात है । आजतक कोई भी लेख व ग्रन्थस्थ उल्लेख मेरे अवलोकनमें नहीं आया जो दोनोंको एक माननेका संकेत करता हो । बिलहरीका
और भी कुछ नाम रहा होगा यह भी अज्ञात है । ऐसी स्थितिमें बिना किसी अकाट्य प्रमाणके बिलहरीका प्राचीन नाम पष्पावती स्थापित कर देना या मान लेना, किसी भी दृष्टि से उचित नहीं। ___ जिस पुष्पावतीका माधवानल निवासी था, वह तो पूर्वदेशमें गंगाके किनारे कहीं रही होगी, जैसा कि वाचक कुशललाभके उल्लेखसे सिद्ध है। इस चौपाईमें आगे भी बीसों उल्लेख पुष्पावतीके आये हैं । वहाँपर गोविन्दचंद राजा था, और वह हरिवंशी था। बिलहरीको थोड़ी देरके लिए पुष्पावती–किंवदन्तीके आधार पर मान भी लिया जाय तो भी एक आपत्ति यह आती है कि यहाँपर गोविन्दचन्द नामक हरिवंशीय कोई भी राजा हुआ ही नहीं। न बिलहरीके निकटकी नदीका ही कोई ऐसा नाम है, जो गंगाके नामसे समानता रखती हो।
मैंने इन आख्यानकोंको इसी दृष्टिसे पढ़ा है और बिलहरी तथा तत्सन्निकटवर्ती स्थानोंका अन्वेषण भी किया है, वहाँपर प्रचलित रीति-रिवाजोंको भी समझनेकी चेष्टा की है, परन्तु मुझे ऐसा संकेत तक नहीं मिला कि इन आख्यानक-वर्णित रिवाजोंके साथ उनकी तुलना
'जबलपुर-ज्योति, पृ० १५७, "ते हिज गंग वहइ सासती, तिण तटि नगरी पुहपावती गोविन्दचन्द करइ तिहाँ राज.....।
आनन्द-काव्य महोदधि, पृ० १०,
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