________________
मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व
३६३ कवियोंने अपने अपने प्रान्तोंके ग्राम, नगर, पर्वत और नदियोंके नाम जोड़ दिये होंगे, कारण कि ऐसी कथाओंका ऐतिहासिक महत्त्व प्रधान नहीं होता, मुख्य तो जन-रंजन रहता है। __छत्तीसगढ़में डोंगरगढ़ के कुछ अवशेष भी इस आख्यानके साथ जुड़से गये हैं । अस्तु ! __अब पुनः बिलहरी के कथित माधवानल कामकन्दलाके महलकी
ओर लौट चलें। ___इन त्रुटित अवशेषोंको सम्यक्रीत्या देखनेसे तो ऐसा लगता है कि, यह कथित महल ढह गया है, कारण कि अवशेषोंका जमाव ऐसा ही है, कुछ खम्भे एवं ऊपर की डाँटें आज भी सुरक्षित हैं । इनके ऊपरसे कोसों तकका सौन्दर्य देखा जा सकता है । गिरे हुए अवशेष एवं टीलेकी परिधि एक फर्लागसे ऊपर नहीं है, अतः यह महल तो हो ही नहीं सकता । गिरे हुए पत्थरोंको हटाकर जहाँतक हमारा प्रवेश हो सकता था, हमने देखा, वह महल न होकर एक देवालय था। गर्भगृहके तोरणको-जो पत्थरोंमें दबा हुआ-सा है, देखनेसे तो यही ज्ञात होता है कि यह शैव मन्दिर है। नागकन्याएँ एवं गणेशजीकी मूर्ति के अतिरिक्त शिवजीकी नृत्य मुद्राएँ तोरणकी चौखटमें खचित हैं । इसे शिवमन्दिर माननेका दूसरा और स्पष्ट कारण यह है कि ठीक तोरणसे ५ हाथ पर विस्तृत जिलहरी पड़ी हुई है। ज्ञात हुआ कि इसमें से एक लेख भी प्राप्त हुआ था, जो नागपुरके संग्रहालयमें चला गया। मेरे विनम्र मतानुसार यह अवशेष उसी शैवमन्दिरके होने चाहिए, जिसे केयूरवर्षकी रानी नोहलादेवीने बनवाया था। मन्दिरके सभा मंडपके स्तम्भ व कुछ भाग बच गया है, उससे इसका प्राचीनत्व सिद्ध है । मन्दिरमें व्यवहृत पत्थर बिलहरीका रक्त प्रस्तर है। समझमें नहीं
'यहाँ के किसी सजनने भी इस आख्यानको बिलहरीके महत्वको . प्रकट करनेके लिए लिखा है, प्रकाशित भी हो गया है ।
Aho ! Shrutgyanam