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खण्डहरोंका वैभव
नदी भी होनी चाहिए। एक बात और ध्यान देनेकी है, वह यह कि तरनतारण स्वामीका जन्म भी पुष्पावतीमें हुआ था, ऐसा कहा जाता है, उनका विहार प्रदेश, अधिक सागर दमोह व बुन्देलखंडका भू-भाग रहा है। बिलहरी इसीके अन्तर्गत है । तारणस्वामीके अनुयायियों का मानना है कि यह वही पुष्पावती है जिसे लोग बिलहरी कहते हैं। वहाँ जैनोंका उन दिनों—१४ शती में व इससे कुछ पूर्व - बहुत बड़ा केन्द्र था । माधवानलका बघेलखंड से गुज़रना ये सब बातें मिलजुलकर एक भ्रामक परम्परा बन गईं, किन्तु तारणस्वामी के साहित्य में ऐसी बात नहीं पाई जाती । उत्तरवर्ती अनुयायी - भक्तोंसे इस किंवदन्तीका सूत्रपात हुआ । यह विषय काफ़ी विचारकी अपेक्षा रखता है । हाँ, इतना मैं कह देना चाहूँगा कि इस ओर तारण- परम्पराके उपासकोंकी संख्या
हज़ारों में है ।
वाचक कुशललाभने माधवानलका जो मार्ग बताया है, उसमें न तो नर्मदाका उल्लेख है और न मध्यप्रदेशके किसी भी गाँव, पर्वत और ऐसे ही किसी स्थानकी चर्चा है, जिससे उनका इस ओर आना प्रमाणित हो सके । माधवानल के हिन्दी आख्यानका कुछ मेल कुशललाभ कथासे बैठता है । राजा गोविन्दचन्द्र, पुष्पावती, कामावती और कामसेन, आदि नाम दोनों कथाओं में समान हैं। पर मार्ग में बड़ा अन्तर है । हिन्दी - आख्यान रीवाँ के कामदपर्वत — कामतानाथ - चित्रकूट - का उल्लेख करते हैं तो कुशललाभ केवल कामावतीका ही ।
मुझे तो ऐसा लगता है कि यह लोककथा होनेसे प्रत्येक प्रान्तके
"यह स्थान रीवाँसे ८६ मील गहरे बनोंमें है, इसे आम्रकूट- अमरकूट भी कहते हैं, कालिदासका आम्रकूट शायद यही हो, जिला छिंदवाड़ा में अमरकूट नामक एक स्थान है । पर मेरी सम्मतिमें रीवाँ वाला स्थान अधिक युक्ति-संगत जान पड़ता है ।
Aho! Shrutgyanam