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खण्डहरोंका वैभव कि छत्तीसगढ़में इनके अनुयायियोंकी संख्या काफी है। कवर्धा, कबीरधाम का रूपान्तर माना जाता है। इस ओर कबीर साहबका साहित्य प्रचुर परिमाणमें उपलब्ध होता है । गबेषकोंके अभावमें इतनी विराट सामग्रीका अभीतक समुचित प्रबन्ध नहीं हो सका है; न निकट भविष्यमें संभावना ही दृष्टिगत होती है। सती व शक्ति चौतरे___ सती-चौतरोंकी संख्या सापेक्षतः महाकोसलमें अधिक पाई जाती है। निकटवर्ती प्रदेश, विन्ध्य प्रान्त तो एक प्रकारसे सती-चौतरोंका केन्द्रस्थान ही है । सागर, दमोह, जबलपुर आदि जिलोंमें सैकड़ों ऐसे सती स्थान व उनकी मूर्तियाँ उपलब्ध होती हैं, जिनमें कुछ एकपर लेख भी खुदे पाये जाते हैं। ऐसे साधन भले ही पुरातन-कलाकी दृष्टि से महत्व न रखते हों, पर ऐतिहासिक दृष्टिसे इनकी उपयोगिता है। ___ महाकोसलमें सर्व प्राचीन जो सती-स्मारक उपलब्ध हुआ है वह 'बालौद' (जिला द्रुग) में विद्यमान है। इनपर लेख भी हैं। एक लेख, जो स्व० डाक्टर हीरालालजी द्वारा पढ़ा गया था, वह संवत् १००५ का है। दूसरा लेख जिसका वाचन प्रिन्सेप साहब द्वारा संपन्न हुआ था, उसका काल आपने ईसाको दूसरो शताब्दी स्थिर किया है। यदि उपर्युक्त वाचन ठीक है, तो कहना पड़ेगा कि भारतमें पुरातन सती-चौतरोंमें इसकी गणना प्रथम पंक्तिमें की जायगी।
पुरातन साहित्य व शिला तथा ताम्रपत्रोत्कीर्णित लिपियोंसे सिद्ध है कि महाकोसल में शक्तिपूजाका प्रचार बहुत प्राचीन कालसे रहा है। यहाँके आदिवासी प्रत्येक कार्यकी सफलताके लिए शक्तिके किसी भी रूपकी मनौती करते हैं । सुसंस्कृत कालमें भी शक्ति-पूजार्थ बड़े-बड़े मन्दिर व
'श्री स्व० गोकुलप्रसाद--दुग-दर्पण, पृष्ठ ८२ ।
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