Book Title: Khandaharo Ka Vaibhav
Author(s): Kantisagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 442
________________ खण्डहरोंका वैभव होता है । साथ ही साथ अधिकार और उत्तरदायित्व सफल - अभिव्यक्त होता है । मुखमुद्रा शालीनता का आभास कराती है । इतने व्यक्तित्व में पगड़ी तो बेचारी गौण हो जाती है । विशाल ललाटपर कुण्ण लगा है । जिसपर लगभग पाँच इंच ऊँची पगड़ी है । यह उपर्युक्त दोनों पगड़ियोंसे भिन्न है । मस्तक के मध्य भागसे कुछ विभिन्न होती है, जिसके फलस्वरूप २|| इंच मस्तकका भाग खाली ही पड़ा रहता है । दो भागों में दो लपेटें ही दृष्टिगोचर होती हैं और इस तरह चारों लपेटोंपर से उपर्युक्त २|| इंच रिक्त मस्तकके ऊपरी कोनेसे एक लपेट सारे सिरके चारों ओर जाती है । इस एक लपेटमें ही मुग़ल प्रभाव परिलक्षित होता है यद्यपि मुग़लों में तीनसे भी अधिक लपेटें दृष्टिगोचर होती हैं । रूपान्तर से यह एक समर्थक पा सकता है । ४१४ चौथी पगड़ी चौथी पगड़ीकी गर्दन भी दुर्भाग्य से पूर्ण प्राप्त नहीं हुई । इसमें चक्षु और पगड़ी ही आकर्षणकी वस्तु है । आँखें इस प्रकार निकली हुई हैं मानो कोई अतीव वृद्ध पुरुष हो । मस्तकपर त्रिपुण्डका चिह्न भी उत्कीर्णित है जो हिन्दुत्वका परिचायक है । मस्तकपर जो पगड़ी है, उसके तीन खंड हैं । यह तीन इंच ऊँची है । लपेटन में सुघड़ाई चतुराई और 'फैशन' 1 है । तीनों भागोंकी लपेटनोंका जमाव कलात्मक नज़र आता है । मध्यभाग में मस्तक के बिलकुल ऊपर चार कंगूरेसे हैं, इन सब बारीकियोंको देखकर ऐसा लगता है कि जिस युगमें इस प्रस्तरका निर्माण हुआ होगा उस समय पगड़ी धारण करनेकी शैली पर्याप्त विकसित और कलात्मकता के कई रूप पा चुकी होगी । पगड़ीका ढाँचा शुद्ध बुन्देलखंडी है पर महाराष्ट्रीय प्रभावसे प्रभावित है । इस तरह हम देखेंगे कि इन पगड़ियोंके ढंग में ऐतिहासिक एवं सामाजिक बनाव सिंगार तथा सांस्कृतिक रहन-सहनकी सामग्री विद्यमान है। Aho! Shrutgyanam

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