Book Title: Khandaharo Ka Vaibhav
Author(s): Kantisagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 441
________________ महाकोसलकी कला कृतियाँ ४१३ दूसरी पगड़ी अवशिष्ट तीन पगड़ियाँ 'बस्ट' में नहीं हैं केवल गर्दनमात्र है । उपर्युक्त 'बस्ट' से भिन्न इस गर्दन में शौर्य का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है, दाढ़ी ठीक ऊपर जैसी ही रही होगी, जैसा कि खण्डित भागों से ज्ञात होता है जुल्फें विद्यमान हैं । मूँछोंकी तरेर अवश्य प्रभावोत्पादक है, पर उनमें वीरोचित गुणोंकी छाया नहीं है, केवल औपचारिक शृंगार है। व्यक्ति अभिजात वर्गका प्रतीत होता है । इसकी पगड़ी यद्यपि बैठी हुई है, परन्तु पगड़ियोंके क्रमिक विकासकी दृष्टिसे अध्ययनकी वस्तु उपस्थित करती है। मुकुट और पगड़ीके बीच की श्रृंखलाका उत्तम प्रतीक है । यह पगड़ी मस्तक से तीन इंच ऊँची गयी है। पगड़ीकी लपेटनोंमें कानोंके ऊपर से प्रारम्भ होकर एक गोरखधंधा - सा बन गया है जैसा कि चित्र संख्या २ से स्पष्ट है । इसमें लपेटनोंकी टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ऐसी हैं कि छोरका पता ही नहीं चलता । पगड़ीके नीचे कुस्सा भी पहना जान पड़ता है, मस्तक के बीचो-बीच पगड़ी दो खंडों में विभक्त है— विभाजन स्थलपर स्त्रियोंके स्वर्ण बिन्दे के आभरण जैसी एक तीन फलवाली शिरा लटक रही है - जो कमसे कम राजपूत तो नहीं रख सकता, क्योंकि उसकी विशेषता तो कलंगीको ऊँची रखने में ही है । पगड़ी दो भागों में विभक्त है तथापि तीन लपेटें बायें और तीन दायें घूमकर लुप्त हो गयी हैं । लपेटोंकी मुटाई ३/४ इंच है । कालपरिचायिका पगड़ीका विशेष महत्त्व है । तीसरी पगड़ी तीसरी गर्दन में भी केवल पगड़ी ही विद्यमान है जो बुन्देलखंडी ढंगकी है । यद्यपि इसका विधान दोनोंसे कुछ भिन्न है तथापि मौलिक अन्तर नहीं है । दाढ़ी इसमें भी है। दोनों ओठ बन्द हैं जिससे व्यक्तिका गांभीर्य परिलक्षित होता है। ठोड़ी में स्वाभाविक कोमलता है । नासिका मूँछोंके ऊपरवाले भागको स्पर्श करती है जिससे उसकी चिन्तनावस्थाका बोध Aho! Shrutgyanam

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