Book Title: Khandaharo Ka Vaibhav
Author(s): Kantisagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 444
________________ खण्डहरोंका वैभव शिवजीके जटाजूटका अंकन दोनों प्रदेशोंके प्रायः सभी कलीपकरणोंमें हुआ है। हमें तो केवल मुकुटका ही उल्लेख उचित जान पड़ता है । जिसका संबंध पगड़ियोंसे है । ___ इसी ग्रन्थमें अन्यत्र अवलोकितेश्वरका चित्र प्रकाशित है, उसके मुकुट की रचना-शैलीपर शिवजीके जटाजूटका खूब प्रभाव है । दोनों ओर अर्ध गोलाकार ३-३ रेखाओंवाली ३-३ लड़ें हैं । इसीको मुकुटका रूप दे दिया है । मालूम पड़ता है जटापर गंगाकी धारा प्रवाहित हो रही है। इस शैलीके एकमुखी या चौमुखी शिवलिंग भी बहुतायतसे पाये गये हैं। ऐसी कृतियाँ १२ वीं शतीतककी मिली हैं । इस प्रकारकी रेखाओंमें १२ वीं शतीके बाद परिवर्तन होने लगा, अर्थात् दोनों ओरकी रेखाओंके ऊपर भी एक गोलाकार रेखा मॅड़ने लगी जो आजू-बाजूकी अर्ध-गोलाकार रेखाओंको कड़ीके समान पकड़े हुए था । ऐसे तीनसे अधिक मस्तक हमारे संग्रहमें हैं । कुछ ऐसे भी मुकुट हैं, जिनकी रेखाओंमेंसे जलबूंदें टपकती रहती हैं। ये गंगावतरणका आभास देती हैं। इसी समयका एक मस्तक ऐसा भी है, जिसपर रेखाएँ बहुत ही टेढ़ी-मेढ़ी हैं। छोरका पता नहीं । यह सब शैव प्रभाव है । इसी प्रकार क्रमशः मुकुटोंकी सृजन शैलीमें परिवर्तन होने लगा। वह परिवर्तन १४वीं शतीके अवशेषोंमें पगड़ियोंके रूपमें बदल गया, जैसा कि संख्या २ वाले चित्रसे स्पष्ट है । यद्यपि इनमें सामयिक मौलिकता है, परन्तु प्राचीन शिल्प-कृतियोंका अनुसरण स्पष्ट है । मुकुटमें मध्य भाग साधारण रहता था और दोनों ओरकी रेखाएँ सुन्दर रहा करती थीं, पर बादमें जब पगड़ियोंके रूपमें परिवर्तन हुआ तब मध्य भाग काफी ऊँचा उठा दिया गया और उसे कसने के लिए २,२ रेखाएँ दोनों ओर उड़ने लगी जैसा कि 'बस्ट' संख्या १में देख सकते हैं । अतः मुकुटोंके मूलमें ही पगड़ियोंका आदि स्रोत है। मुग़लोंके बाद पगड़ियोंमें काफ़ी परिवर्तन हुआ। परन्तु बुन्देलखण्ड और महाकोसलकी पगड़ियाँ हिन्दू शैलीका रूप हैं । बल्कि वह संस्कृतिजन्य धार्मिक परम्पराका विस्तृत प्रतीक है। यद्यपि यह हमारी कल्पना है, पर Aho! Shrutgyanam

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