Book Title: Khandaharo Ka Vaibhav
Author(s): Kantisagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 440
________________ ४१२ खण्डहरोंका वैभव लौह पिंजरकी रेखाएँ स्पष्ट हैं । दाढ़ीका जमाव शुद्ध हिन्दू शैलीका हैजैसा बुन्देले वीरोंकी जुझार-मूर्तियोंमें मिलता है। मछोंकी तरेरमें भी शौर्यकी झाँकी मिलती है। संपूर्ण मुखमुद्रामें अकड़ और अटेंशनके भाव परिलक्षित है । प्रश्न हैं कि यह सामान्य योद्धा है या सेनाका कोई अधिकारी। इसका निर्णय तो एकाएक करना कठिन है। इसमें तत्कालीन विचारधारा ही हमारी साक्षी हो सकती है । उन दिनों साधारण सैनिकका स्मारक या प्रतिमा बनती हो, ऐसे मतकी कल्पना नहीं की जा सकती। अतः संभवतः कोई उच्च पदाधिकारी होना चाहिए । इसे शासक भी माननेको मन करता है, परन्तु उसमें प्रमुख आपत्ति यह आती है कि उपयुक्त पद-सूचक उदाहरणों का अभाव है। प्राचीन कालमें प्रमुख वीरोंके स्मारक कहीं-कहीं पाये जाते हैं। यह 'बस्ट' भी उसीका परिणाम है। रही होगी तो कोई मूर्ति ही, पर खण्डित होते-होते 'बस्ट' के रूपमें शेष रह गयी है। न जाने पूर्वकालमें इसने कहाँकी समाधिको सुशोभित किया होगा। इस भू-भागपर भी वीरोंकी समाधियाँ काफ़ी प्राप्त होती हैं। सर्व साधारण जनता नगर के बाहर भागमें पाये जानेवाले वीरोंके स्मारकोंकी अर्चना आज बड़े भक्ति-भावसे करती है । यह भी विस्तृत वीर पूजाका एक प्रतीक ही है। 'बस्ट' में ध्यान आकर्षित करनेवाली वस्तु 'पगड़ी' है। मालूम पड़ता है कि विशुद्ध बुन्देलखंडी पगड़ी है, परन्तु नागकी सीधमें ब्रह्मनागके दो समान भागोंमें विभक्त होती है । विभाजनकी रेखापर ५॥ सलें लंबे रूपमें पड़ी हुई हैं । इन सलोंके दक्षिण वाम पगड़ीकी ओर आठ आठ सलें हैं, जो अब आधा-आधा इंच मोटी हैं । सलें गोल हैं। सैंड-स्टोन का यह बस्ट है। प्रस्तरको घिसते देर नहीं लगती, इसपर कार्य करना भी बड़ा कठिन कार्य है । दीर्घकालीन साधनाके बाद ही संभव है । इसे देखनेके बाद ये शब्द मुँहसे निकलते हैं--"अफसोस, यह पूर्ण नहीं है। अकेला 'बस्ट' महाकोसलीय शिरस्त्राण और देहत्राणके परिचयके साथ योद्धाके वीरत्वका ज्ञान कराता है.। Aho! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472