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खण्डहरोंका वैभव
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गृहसे बहुत से पुराने ज़ार मेरे सम्मुख पटक दिये। इनमें कई प्रकारकी छैनियाँ एवं हथौड़े थे । बारीकसे बारीक छैनी, सूच्यग्र भाग प्रमाण एवं ६’” लम्बी थी | बड़ीसे बड़ी छैनी ६" तक चौड़ी थी । प्रत्येक प्रकारकी छोटी बड़ी छैनी के अनुसार ही हथौड़े प्रयुक्त किये जाते थे। ऐसा उनसे ज्ञात हुआ । वृद्धाके पास कुछ पुराने कागजात भी थे, इनमें मन्दिर के अंगउपांग एवं विभिन्न मूर्तियोंकी कच्ची रेखाएँ खिंची हुई थीं । वृद्धा एकाकी होनेके बावजूद भी सामग्री देने को प्रस्तुत न हुई । संभव है अन्वेषण करने पर इस प्रकारके और भी साधन प्राप्त हों, जिनसे महाकोसलकी शिल्पकलापर प्रकाश पड़े । और यह भी ज्ञात हो कि यहाँ के कलाकारोंने प्रेरणा कहाँ से ली ?
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हिन्दू धर्मकी मूर्तियाँ
महाकोसल के अवशेषों में हिन्दू धर्मकी सभी शाखाओं की मूर्तियाँ सम्मि लित है। शैव और वैष्णवके अतिरिक्त अन्य पौराणिक देव देवियाँ, गंगा गजलक्ष्मी, पार्वती, कल्याणदेवी, अर्धनारीश्वर, नवग्रह, गरुड़, गणेश, कुबेर - आदिका समावेश होता है । प्राप्त समस्त मूर्तियों का सामूहिक परिचय देना लघुतम प्रबन्धमें संभव नहीं अतः प्रत्येक शाखाकी प्रधान एक एक मूर्तियों का परिचय ही पर्याप्त होगा ।
इतिहास से स्पष्ट है कि महाकोसल में गुप्तोंका शासन रहा है । गुप्त परम भागवत थे । उस समय भागवत धर्मका प्रचार व्यापक रूपसे था । एरणका गरुड़ स्तम्भ विख्यात है, जो गुप्तकालीन कृति है । इसकी ऊँचाई ४७फीकी है। लोग इसे भीमकी गदा कहते हैं । इसपर जो लेख उत्कीर्णित हैं, उससे ज्ञात होता है कि बुधगुप्त के समय खड़ा किया है । निकट ही एक विष्णु मंदिर है, उसके सम्राट समुद्रगुप्त सन् ३३५-३८० ] का खंडित लेख है । विष्णु के दशावतारोंमें वराह भी सम्मिलित है । इसकी दोनों प्रकारकी - आदि वराह और भू-वराह-को बहुसंख्यक मूर्तियाँ आज भी सागर, जबलपुर
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