Book Title: Khandaharo Ka Vaibhav
Author(s): Kantisagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 431
________________ महाकोसलको कतिपय हिन्दू - मूर्तियाँ गजलक्ष्मीकी स्वतन्त्र मूर्तिकी उपलब्धि स्वाभाविक है । धार्मिक आर्थिक एवं ऐतिहासिक तीनों दृष्टियोंसे इसका महत्त्व है । जिस गजलक्ष्मीका शब्दचित्र प्रस्तुत किया जा रहा है वह हल्के रक्त प्रस्तरपर उत्कीर्णित है । दुर्भाग्य से खंडित भी है । परन्तु वाम भाग पूर्ण होनेसे, त्रुटित दक्षिण भागकी कल्पना सहज में की जा सकती है। दोनों हाथियोंके बीच चतुर्भुजी लक्ष्मी विराजमान है । ऊपरके बायें दायें हाथोंमें नालयुक्त कमल दृष्टिगोचर होते हैं । निम्न दक्षिण हाथकी वस्तु खंडित है । बायें हाथमें कुम्भकलश है । लक्ष्मी के मस्तकपर साधारण मुकुट है । कर्णकुण्डल आवश्यकतासे अधिक बड़े हैं । कलाकी दृष्टि से यही कहना पड़ेगा कि यह अपरिपक्व शिल्पीकी कृति है । परिकर में दीर्घकालीन अनुभवका आभास न होते हुए भी साधारण आकर्षक अवश्य है । लक्ष्मी के दोनों ओर हस्ती आलेखित हैं । दोनोंकी कलशयुक्त झुंडि ठीक महालक्ष्मी के मस्तकपर हैं 1 कलशोंसे महालक्ष्मीका अभिषेक हो रहा है। दक्षिण हाथीका घड़ सर्वथा खण्डित हो गया है । वाम भागके समान इस ओर भी एक चँवरधारिणी रही होगी । वाम हाथी पूर्ण है । तदुपरि अंकुश लिये महावत अवस्थित है | किनारेपर चँवरधारिणी खड़ी हुई है । ऊपरका भाग दो आकृतियोंसे विभूषित है । दक्षिण भाग ऐसा ही रहा होगा । सूचित आकृतियोंके मध्य में अर्थात् दोनों हाथियों के ठीक ऊपर दो सिंह उत्कीर्णित हैं । पीठपर बालक भी है । सिंहों का खुदाव सामान्यतः अच्छा ही है । सिंहों के मुखमें कलाकारने दो ऐसी चीजें दी हैं जो एक दूसरे से लिपट गई हैं । 1 ४०५ ។ गंगा - प्राचीन मन्दिरोंके तोरणद्वार में गंगायमुनाकी खड़ी मूर्तियाँ गंगाकी मूर्तियों का उल्लेख "स्कंदपुराण" के काशीखंड के पूर्वार्द्ध भ० १८२ के २७ श्लोकमें आता है । Aho! Shrutgyanam

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