________________
मध्यप्रदेशका हिन्दू पुरातत्व
३७६
है, पर प्राचीनता के कारण अध्ययनकी वस्तु अवश्य है । मन्दिर सामान्य जङ्गलमें पड़ता है । सभामण्डप पूर्णतः खण्डित हो चुका है । गर्भगृह में बहुत से अवशेष पड़े हुए हैं । महामायाके नामसे पूजी जानेवाली प्रतिमा बहुत प्राचीन नहीं जान पड़ती । मन्दिर चपटी छतका है। इसकी शिल्पकला व निर्माणपद्धतिको देखनेसे ज्ञात होता है कि, ग्यारहवीं से बारहवीं शती के बीच इसका निर्माण हुआ होगा; क्योंकि उन दिनों शैव तान्त्रिकका प्रभाव, रायपुर जिले में अत्यधिक था । शंकरके विभिन्न तन्त्रमान्य स्वरूपोंका मूर्तरूप आरंगके अवशेषों में विद्यमान हैं। आज भी नवरात्र में कुछ साधक साधना करते हैं । मन्दिरके सम्मुख ही सैकड़ों वर्ष पुराना वृक्ष है; जिसकी खोहमें धन गड़ा हुआ है, ऐसो किंवदन्ती प्रसिद्ध है । अर्थ1 लोलुपने खनन भी किया, पर असफल रहे ।
नारायण तालपर बहुत-सी मूर्तियाँ पड़ी हुई हैं, जिनमें दो विष्णु मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं ।
यहाँ दो ताम्रशासन भी प्राप्त हुए हैं, इनमें एक राजर्षितुल्यकुल का है जिसकी तिथि ६०१ ईस्वी पड़ती है । इस ताम्रपत्रको बारह दिसम्बर १६४५ को मैं स्वयं देख चुका हूँ । संभव है इस कुलकी राजधानी आरंगमें ही रही होगी ।
श्रीपुर - सिरपुर :
मध्य-प्रान्त में पुरातत्त्व के लिए यह नगर पर्याप्त प्रसिद्ध है । १६ दिसम्बर, १९४५ को यहाँका इतिहास - प्रसिद्ध विशाल लक्ष्मणदेवालय देखनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था । यह मन्दिर प्रान्तीय पुरातत्वकी अनुपम सम्पत्ति है । अपने ढंगका ऐसा अनोखा और प्राचीन वास्तुकलाका प्रतिनिधित्व करनेवाला मन्दिर, प्रान्तमें अन्यत्र शायद ही कहीं हो । मन्दिरका तोरण ६४६ फुटका है । तोरणका
मध्यप्रदेशका इतिहास, पृ० २२
Aho! Shrutgyanam