Book Title: Khandaharo Ka Vaibhav
Author(s): Kantisagar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 406
________________ ३८२ खण्डहरोंका वैभव है कि किसी समय यहाँ प्राचीन मन्दिर भी अवश्य रहा होगा, क्योंकि मृत्तिका में दबे कुछ अवशेष मैंने निकलवाये थे । महानदी के तटपर अवस्थित गन्धेश्वर महादेव सिरपुरका प्रधान मन्दिर है । अभ्यान्तरिक दो स्तम्भोंपर बिना संवत् के दो विशाल लेख नवीं शतीकी लिपिमें उत्कीर्णित हैं । मन्दिरको अवस्थाको देखते हुए पुरातनताका अनुभव नहीं होता । कहा जाता है कि चिमनाजी भोंसलेने इसका जीर्णोद्धार करवाया था, एवं इसकी व्यवस्था के लिए कुछ ग्राम भी दिये थे' । शिखर के दोनों ओर बाह्य भाग में गणयुक्त शंकर-पार्वतीकी संयुक्त प्रतिमा तथा विष्णुकी मूर्तियाँ श्याम पाषाणपर खुदवाई गई हैं। विदित होता है कि ये अवशेष लक्ष्मण देवालयसे लाकर यहाँ लगवा दिये गये हैं । पास में १५ पंक्तिवाला एक विशाल शिलालेख बैठनेके स्थान में एवं एक लेख मन्दिरकी पैड़ीमें लगा दिया गया है । इसीके सामनेवाले हनूमानके मन्दिर में भी कार्त्तिकेय आदिकी प्रतिमाएँ हैं । पश्चात् भाग में महिषासुर, गंगा, गणेश आदि देवोंकी प्रतिमाएँ स्निग्ध श्याम पाषाणपर बहुत ही उत्तम ढंगसे उत्कीर्णित हैं । इनमें अष्टभुजी देवीकी प्रतिमा कला एवं भाव- गाम्भीर्यकी दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ही नहीं, वरन् सिरपुर से प्राप्त सभी अवशेषों में सर्वश्रेष्ठ है। सूक्ष्मता के लिए हम इतना ही कहना पर्याप्त समझेंगे कि पाषाणपर केश विन्यासकलाका विकास, पलकके केशोंकी स्पष्टता, ललाट एवं उदरकी आवलियाँ बहुत ही स्पष्ट रूप से व्यक्त हुई हैं । इस मूर्तिका महत्त्व तत्कालीन युद्ध में काम आनेवाले शस्त्रोंके इतिहासकी अपेक्षासे भी सर्वोपरि है । इसी प्रकार के शस्त्रवाले कुछ जुझार भी हमने सिरपुर में देखे हैं, जिनपर संवत् १९०६ फाभन और संवत् १४०३ के लेख खुदे हुए हैं। देवी जिसपर अधिष्ठित हैं, उसका मस्तक वराह-तुल्य है एवं शेष शरीर मानव-तुल्य है । सिरपुर हुआ १ बात यह है कि पुराने अवशेषोंको लेकर ही इस मन्दिरका निर्माण है 1 Aho! Shrutgyanam

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