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खण्डहरोंका वैभव स्थानसे थोड़ी दूरपर अवस्थित है। कुछ और भी गढ़े-गढ़ाये पत्थर पड़े हुए हैं । मधुछत्र एकवृक्षके सहारे खड़ा किया हुआ है । इसकी लम्बाईचौड़ाई-मुटाई देखकर आश्चर्य होता है । पूरा पट्ट६४+६४ इंच है । इसमें ५०+५० भाग अलंकृत है । ७+७ कर्णिका है। मध्य भागमें अत्यन्त सुन्दर कमलाकृति बनी हुई है। इस आकृतिको समझने के लिए इसे चार भागोंमें विभक्त करना होगा । प्रथम कमल १३+ १३ दूसरा २०+२० तीसरा २६ + २६ और चौथा ३८+ ३८ है । सम्पूर्ण पट्टकके मध्य भागमें इस प्रकार शोभायमान है । चारों ओर नक्काशीका अच्छा काम है। ह इंच तो इसकी मुटाई ही है। अनुमान किया जा सकता है कि इसका वज़न कितना होगा। वहाँ के लोगोंका कहना है कि पहले तो यों ही पड़ा हुआ था । बादमें जब खड़ा किया तब २०० मनुष्योंका बल लगा था। निस्संदेह महाकोसलकी यह महान् कलाकृति है। प्रान्तमें जितने भी अवशेष और स्थापत्य मैंने देखे, उनमें मधुछत्र नहीं था। अतः यह प्रथम कृति तबतक समझी जानी चाहिए, जब तक और प्राप्त न हो जाय । यह बिलहरीके ही किसी प्राचीन मन्दिरकी छतमें लगा होगा। इसकी कोरनी, पत्थर व रचनाशैलीसे मेरा तो यह मत स्थिर हुआ कि हो न हो यह कामकन्दला के नामसे सम्बद्ध शैव-मंदिरकी छटाका ही भाग होगा, क्योंकि वर्तमान स्तम्भाकृति-रचना व जो गर्भगृह वहाँपर है वह ६०-६० इञ्चसे कुछ कम ही लम्बा चौड़ा है। सरकारको चाहिए कि इस सर्वथा अखंडित कलाकृतिका समुचित उपयोग करे। कमसे कम सुरक्षाकी तो व्यवस्था करे ही। क्योंकि लाल चिकना प्रस्तर होनेके कारण ग्रामीण इस पर शस्त्र पनारते रहते हैं। ___ मैंने मध्यप्रान्तीय सरकारके भूतपूर्व गृहमन्त्रीका ध्यान इस ओर आकृष्ट करते हुए सुझाया था कि जबलपुरके शहीद स्मारकमें जो आश्चर्यग्रह बनने जा रहा है. इसीमें मेरा संग्रह भी रहेगा---उसकी छतमें इसे लगा दिया जाय । पर, मंत्रियोंको सांस्कृतिक सुझाओंकी क्या परवाह रहती है !
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