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खण्डहरोंका वैभव
आता कि यह स्पष्टतः शैवमन्दिर होते हुए भी, कामकन्दला नामके साथ कैसे सम्बद्ध हो गया ।
हाथीखाना
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उपर्युक्त मन्दिर के समान यह भी मन्दिरका ही ध्वंसावशेष है । लोगोंने इसे कर्णका हाथीखाना मान रखा है । यह स्थान गाँवसे एक मील, उपर्युक्त मन्दिरके मार्ग में ही पड़ता है । चारों ओर अच्छा हाता-सा घरा है । सम्भव है दीवाल के त्रुटित अवशेष हों । इन अवशेषों को देखनेसे यही ज्ञात हुआ है कि इसका सम्बन्ध तान्त्रिक साधकोंसे होना चाहिए, जैसा कि स्तम्भोंपर उकेरी हुई मैथुनाकृति सूचक मूर्तियों से ज्ञात होता है । शिखरके तीनों ओर बाह्य गवाक्षोंमें स्थापित दुर्गा, सरस्वती और नृसिंहकी मूर्तियाँ विद्यमान हैं। शिवगणका सफल अङ्कन इन अवशेषों के स्तम्भों में परि-लक्षित होता है । पत्थर लाल हैं । कामशास्त्र के आसन यहाँकी तीन शिलापर उत्कीर्णित हैं ।
चण्डी माईका स्थान -भी गाँवके बाहर सघन वृक्षोंसे परिवेष्टित है । यद्यपि देवी मूर्तियों की बाहुल्यके कारण लोगोंने इसे चण्डीमाईका स्थान मान रखा है, किन्तु जो मन्दिर बिलकुल अखण्डित-सा है, उससे तो यही ज्ञात होता है कि यह विष्णु मन्दिर रहा होगा, कारण कि मन्दिरकी चौखटके ठीक ऊपरके भागमें गरुडासीन विष्णु विराजमान हैं। दोनों छोरपर जो दो नारीमूर्तियाँ हैं, वे महाकोशलकी नारी सौन्दर्यकी शृंगारिक तारिका हैं, दोनों नारियाँ दर्पण में अपने सौन्दर्यको देख रही हैं । मुखमुद्रापर सन्तोषकी रेखा व नारी चाञ्चल्य हृदयको स्पंदित कर देता है । सर्वथा अखंडित मन्दिर न जाने आज क्यों उपेक्षित है । इसके आगे विष्णु, शैव एवं तान्त्रिक मूर्तियोंका ढेर लगा है । तत्समीपवर्त्ती एक वृक्षके नीचे भी मूर्तिखंड पड़े हैं ।
उपर्युक्त मंदिरोंके अतिरिक्त दर्जनों मुग़लकालीन मन्दिर सारे गाँव में
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