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ausaint वैभव
विकसित छोटी-छोटी गुमटियाँ एवं गवाक्ष बड़े ही सुन्दर लगते हैं, परन्तु ऊपरका भाग इतना जीर्णप्राय हो गया है कि नहीं कहा जा सकता कब कौनसा भाग खिर जाय । निम्न भागको देखनेसे तो ऐसा लगता है, कि यह मठ न होकर कोई स्वतन्त्र मन्दिर ही रहा होगा कारण कि बड़ा गर्भगृह बना हुआ है । चारों ओर प्रदक्षिणाका स्थान ही शेष है । छतमें डाॅट एवं बेलबूटों की जो रेखाएँ हैं वे विशुद्ध मुग़लकालीन हैं । इनमें गेरुए रंगके प्रयोगकी प्रधानता परिलक्षित होती है । इससे लगे हुए अंधकारग्रस्त कुछ कमरों में भी लिंग-विहीन जिलहरियाँ पड़ी हैं और चमगोदड़ोंका एकच्छत्र साम्राज्य है । बिना प्रकाशके प्रवेश सम्भव नहीं । प्रश्न रह जाता है कि इसका निर्माता कौन है ? लक्ष्मणराज द्वारा विनिर्मित तो यह मठ हो ही नहीं सकता कारण कि प्राचीनताकी झलक कहीं पर भी दृष्टिगोचर नहीं होती, बल्कि विशुद्ध मुग़लकालीन कृति जान पड़ती है कारण कि मुग़ल कलमका प्रभाव छतोंकी रेखाओंसे स्पष्ट जान पड़ता है । ग्राम वृद्धोंसे विदित हुआ कि डेढ़ सौ वर्ष पूर्व, संन्यासियों का यह मठ बहुत बड़े केन्द्र के रूपमें प्रसिद्ध था, जनता उन्हें सम्मानकी दृष्टि से देखती थी । अनाचार सेवनसे यह केन्द्र स्वतः नष्ट हो गया । आज हालत यह है कि चारों ओर इतने पौधे उत्पन्न हो गये हैं कि प्रवेश करना तक कठिन हो गया है । लक्ष्मणराज द्वारा निर्मित कथित मठके लिए अन्वेषणकी अपेक्षा है । मठके सम्बन्ध में एक और बात ध्यान देने योग्य है कि यह कभी जैनमंदिर या साधनाका स्थान न रहा हो ? कारण कि जैनकला के प्रतीक सम स्वस्तिक और कलशका अंकन इसमें है । समीपस्थ वापिकाकी जैनमूर्तियाँ भी इसका समर्थन करती हैं । आज भी मठके निकट दर्जनों जैनकला कृतियाँ विद्यमान हैं ।
माधवानल, कामकन्दला महल और पुष्पावती ?
बिलहरीसे १ || मील दूर कामकन्दला मठके अवशेष छोटेसे टीलेपर
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