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खण्डहरोंका वैभव
लक्ष्मणसागर
बिलहरी में प्रवेश करते ही विशाल जलाशय एवं उसके तटपर बनी हुई गढ़ी ध्यान आकृष्ट कर लेती है । गाँवको देखते हुए तालाब काफ़ी सुन्दर, स्वच्छ एवं स्वास्थ्यवर्धक है । कहा जाता है कई बीसियोंसे इसका पानी सूखा नहीं है । सरोवरको देखते ही बिलहरीकी विराट् कल्पना सजीव हो उठती है । लोकोक्तिके अनुसार इसका निर्माता कोई चन्देल लक्ष्मणसिंह था, परन्तु इतिहाससे सिद्ध है कि चन्देल वंश में इस नामका कोई राजा नहीं हुआ । हाँ, चन्देल राजाओं द्वारा निर्मित गढ़ीके कारण लोगोंने कल्पना कर ली हो कि लक्ष्मणसागरका निर्माता और गढ़ीका कर्त्ता एक ही हो तो आश्चर्य नहीं । गढ़ी चन्देलोंने बनवाई होगी, कारण कि कलचुरि जब दुर्बल हो गये थे तब बिलहरीपर चन्देलोंने अधिकार कर लिया था । लक्ष्मणसागर तो नोहला देवीके पुत्र लक्ष्मणराजने ही बनवाया था, क्योंकि यहाँपर विस्तृत लेख ' उपलब्ध हुआ है, जिससे जाना जाता है कि नोहलादेवीने एक शिवमंदिर बनवाया था । ऐसी स्थिति में पुत्र द्वारा तालाब बनवाया जा सकता है ।
किनारे पर बनी हुई गढ़ी प्रायः नष्ट हो गई है । सन् ५७ के बिद्रोही सैनिकोंने इसमें आसरा लिया था, जिसके फलस्वरूप गढ़ीसे हाथ धोना पड़ा । एक बुर्ज़पर आज भी सैकड़ों गोलियोंके चिह्न बने हुए हैं परन्तु बुर्ज़ में से १ कंकड़ी भी नहीं खिरी । इस गढ़ीके पत्थरोंका उपयोग सड़कों के पुलोंमें हुआ है। गढ़ीका पिछला स्थान एकान्त में पड़ता है | वहाँपर पुरातन मूर्तियाँ भी पड़ी हैं । खंडित गढ़ी भी देखने योग्य है ।
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विष्णुवहार मन्दिर
बिलहरी में प्रवेश करते ही विष्णुवराहके मन्दिरपर दृष्टि स्तम्भित
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