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मध्यप्रदेशका हिन्दू पुरातत्व
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व गणेश की मूर्ति के अतिरिक्त जैनमूर्तियाँ भी उल्लेखनीय है । अधिकतः लेखयुक्त हैं । जबलपुर कोतवालीवाली विस्तृत शिला-लिपि यहींसे प्राप्त हुई थी । जिस प्रकार कलचुरि - शिल्पकी दृष्टिसे बिलहरी और त्रिपुरीका महत्त्व है, यहाँका महत्त्व भी उनसे कम नहीं |
बिलहरी
कटनी से नैऋत्य कोण में नवें मीलपर अवस्थित है । ४ मीलके बाद मार्ग कच्चा है । २ नाले बीच में पड़ने से, मोटर सरलता पूर्वक नहीं जा सकती । १६५० फरवरी के प्रथम सप्ताह में मुझे बिलहरी जानेका सुअवसर प्राप्त हुआ था । मैं चाहता तो यह था कि अधिक दिनोंतक रहकर कुछ अनुशीलन किया जाय, किन्तु परिस्थितिवश समय न निकाल सका । बिलही एकान्त में पड़ जानेसे एवं मार्गकी दुर्गमता के कारण कोई भी विद्वान् जानेकी हिम्मत कम ही करता है । हम जैसे पादविहारियोंके लिए मार्ग - काठिन्य जैसी समस्या नहीं उठती ।
बिलहरोका प्राचीन नाम पुष्पावती कहा जाता है । इस नाम में कहाँतक प्राचीनत्व है, नहीं कहा जा सकता । यहाँ जो भी प्राचीन लेख, शिल्पकृतियाँ एवं अन्य ऐतिहासिक उपकरण उपलब्ध हुए हैं, हैं, उनकी आयु कलचुरि काल से ऊपर नहीं जा सकती, न पौराणिक साहित्य में पुष्पावतीकी चर्चा ही है । तालर्य दशम एकादश शतीकी शिल्प रचनाएँ उपलब्ध होती हैं, अतः कलचुरियुगीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला के अभ्यासियोंके लिए बिलहरी उत्तम अध्ययनकेन्द्र है । यद्यपि प्राचीन वस्तु-विक्रेताओं—जो निकटमें ही रहते हैं—ने सुन्दर कलात्मक प्रतीक वैयक्तिक स्वार्थोंकी क्षुद्रपूर्ति के लिए, बिलहरीके भू-भागको सौन्दर्यविहिन करनेकी किसी सीमा तक चेष्टा की है तथापि अवशिष्ट सामग्री भी एतद्देशीय कलाका प्रतिनिधित्व कर रही है । यहाँके स्थापत्यों में अखण्डित कृति बहुत ही कम है ।
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