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कटनी
खण्डहरोंका वैभव
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जबलपुरसे उत्तर ७० मील है । मध्यप्रदेशीय इतिहास और पुरातत्त्व प्रसिद्ध अन्वेषक स्व० डा० हीरालालजी यहीं पर रहते थे । उनका बच्चाखुचा संग्रह यहाँपर विद्यमान है । गृह प्रवेश द्वारके ऊपर ही अत्यन्त सुन्दर प्रतिमा रखी गई है। भीतर भी पुरातन रेखाओंवाले पत्थरोंका एक द्वार बना है | बगीचे में जैनमूर्ति रखी हुई है, जो बिलहरीकी वापिकासे लाई गई थी । तामपत्र, मुद्राएँ व कतिपय ऐतिहासिक ग्रन्थोंका सामान्य संग्रह है । कटनीके निकट डा० साहबके दाहसंस्कारवाले स्थानपर एक साधारण चौतरा बना हुआ है । अफ़सोसकी बात है कि उनका परिवार; सभी तरहसे सम्पन्न होते हुए भी, उनकी प्रशस्ति तक नहीं लगवा सका है, जब कि चौतरेमें इसलिए स्थान भी छोड़ा गया है । मसुरहा घाटपर मुझे यहाँ दशावतारी विष्णुकी भव्य प्रतिमा प्राप्त हुई थी, इसका परिचय पृष्ठ ३७६ पर है ।
करीतलाई
कटनीसे ३० मील ईशानकोणमें अवस्थित है । कारीतलाई प्राचीनतम कलाकृतियोंका महान् केन्द्र है । सहस्राधिक अवशेष अपहृत होनेके बाद भी आज अनेक श्रेष्ठतम कला-सम्पन्न मूर्तियाँ सुगढ़ित, पत्थर, स्तम्भ, आदि अवशेष प्रचुर परिमाणमें उपलब्ध होते हैं । दुर्भाग्य से इतने महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक केन्द्रका अध्ययन, समुचित रूपसे जनरल कनिंघमके' बाद किसीने नहीं किया । उपलब्ध मूर्तियों में दशावतार, सूर्य, महावीर
'जनरल कनिंघमने सन् १८७६ ईस्वी में एक श्वेत पत्थरकी बृहदाकार नरसिंहाववारकी मूर्ति देखी थी" इसपर स्व० डा० हीरालाल लिखते हैं--" उसका अब पता नहीं है ।"
-जबलपुर- ज्योति, पृ० १२१,
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