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मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्व
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स्त्री परिचारिकाएँ मस्तक विहीन हैं। कटिप्रदेश, हाथोंकी भावभंगिमा बड़ी आकर्षक है । इनके आगे एक-एक परिचारक है । मूर्तिका परिकर साँची के तोरणकी याद दिला देता है । प्रभावलीपर अन्तिम गुप्तकालीन प्रभाव परिलक्षित होता है । यद्यपि मूर्तिपर समय-सूचक कोई लेख नहीं है; पर इसकी रचनाशैली से ज्ञात होता है कि वह १०वीं शतीके पूर्व और १२वीं शतीके बादकी नहीं हो सकती । कलचुरि कालकी कृति मान लें तो अनुचित नहीं । इस शैली की सूर्य-मूर्तियाँ त्रिपुरी, बिलहरी व श्रीपुरमें भी पाई गई हैं ।
बसंता काछीका खेत इससे लगा हुआ है । इसमें पुरातन स्तंभों के उपरि भाग - - आकृतिसूचक तीन अवशेष पड़े हैं | ३ ||| फ़ीटसे अधिक लम्बाई चौड़ाई है। इसमें मुख्यतः तो कीचकाकृति है, पर तीनों ओर अन्य सुन्दरतम मूर्तियाँ भी उत्कीर्णित हैं । यद्यपि स्तंभ बहुत सुरक्षित तो नहीं है, पर मूर्तियोंवाला भाग मिट्टीमें दबा रहनेसे प्रतिमाएँ अखंडित हैं । ऊपर ताम्रशलाका खोंसने की रेखाएँ बनी हैं ।
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कन्जी काछीका खेत बसंताके खेत के ठीक सामने ही सड़कके उस पार पड़ता है । इसमें कुछ लघुतम मन्दिर पड़े हुए हैं, जो सर्वथा अखंडित व सुन्दर खुदाववाले हैं । इन मन्दिरोंकी ऊँचाई, सशिखर ५ फीटसे कम न होगी । ये चलते-फिरते मन्दिर हैं । ऐसे मन्दिर एक ही शिलाखंड को व्यवस्थित रूप से उकेरकर मध्यकाल में बनाये जाते थे । ऐसे कुछ मन्दिर I प्रयाग नगरपालिका-संग्रहालय में, ठीक सामने ही रखे हुए हैं।
वराह मन्दिरके भग्न चौतरेके ऊपर बाजूमें, ( यह पुरातत्त्व विभाग द्वारा सुरक्षित स्मारकों में सम्मिलित हैं ) जलाशयके तटपर तथा खैरदय्या के स्थानोंपर अन्य अवशेष रखे हुए हैं । अरक्षित उपेक्षित २५ अवशेष मैंने संग्रहीत किये थे, जिनमें हरगौरी, पार्वती, जिनेश्वर, गणेश, सूर्य, विष्णु, अहिकालियदमन आदि मुख्य हैं । यहाँ खनन किया जाय तो और भी बहुमूल्य सामग्री प्रचुर - परिमाण में प्राप्त की जा सकती है।
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