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मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्व जबलपुरके निकटवर्ती स्थानोंमें पुरातत्त्वकी प्रचुर सामग्री बिखरी पड़ी है, उनमेंसे कुछ ये हैं-गोपालपुर, लमेटाघाट, ग्वारीघाट, भेड़ाघाट, कर्णवेल आदि आदि ।
भेड़ाघाट : यहाँका-सा प्राकृतिक सौन्दर्य प्रान्तमें अन्यत्र दुर्लभ है । नीचे नर्मदा अविश्रान्त गतिसे प्रवाहित हो रही है, और एक मीलकी दूरीपर जलप्रपात प्रेक्षणीय है। यहाँका चौसठ योगिनीका मन्दिर भारतमें विख्यात है, जिसे गौरीशंकर-मन्दिर भी कहते हैं। इसे सन् ११५५-५६ ई० ( कलचुरि सं० ६०७में ) अल्हणदेवीने निर्माण करवाया था। यह गोल आकारका होनेसे गोलकी-मठ भी कहलाता है। इसकी दीवार लगभग ७ फीट ऊँची है । मन्दिरकी रचना-शैली और पाषाणोंके देखनेसे प्रतीत होता है कि मन्दिर दो बार में बना होगा, अथवा किसी मन्दिरसे पाषाण लाकर यहाँ लगवा दिये गये होंगे । मन्दिरका अधोभाग प्राचीन है, किन्तु इर्द-गिर्दका भाग आधुनिक-सा प्रतीत होता है। मन्दिर और मण्डपके मध्य भागमें छोटे अन्तरालके दाहिनी ओर एक लेख खुदा है, जिसमें लिखा है-'महाराज विजयसिंह देवकी माता महाराणी गोसलदेवी स्वपौत्र अजयदेवके साथ नित्यप्रति भगवान् व द्यनाथके दर्शनार्थ आती थीं।' मुख्य गभंद्वार में गौरीशंकरको प्रधान मूर्ति है, जिसमें शिवदुर्गा नन्दीपर सवार हैं। शिव हाथमें त्रिशूल और पार्वती दर्पण धारण किये हैं। उभय पक्षस्थित स्तम्भोंपर ब्रह्मा और विष्णुकी मूर्तियाँ
इस मठके प्रधान आचार्य सद्भावशंभु थे, जो दाक्षिणात्य थे । युवराजदेवने इस मठको ३ लाख गाँव दान स्वरूप भेंट दिये थे।
तस्मै निस्पृहचेतसे कलचुरि चमापालचूड़ामणिः ग्रामाणां युवराजदेवनृपतिः भिक्षां त्रिलक्षं ददौ ।
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