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मध्यप्रदेशका जैन-पुरातत्त्व
१६१ उपसंहार__उपर्युक्त पंक्तियों के अतिरिक्त रीठी, घन्सौर, सिहोरा, नरसिंहपुर, बरहेठा, एलिचपुर, आदि कई स्थान हैं, जहाँ जैनमूर्तियाँ आज भी प्राप्त होती हैं । "मध्यप्रदेशका इतिहास के लेखक श्रीयोगेन्द्रनाथ सीलकी डायरियाँ-दैनन्दिनियाँ उनके पुत्र श्री नित्येन्द्रनाथ सीलके पास आज भी सुरक्षित हैं । मध्यप्रदेश और विशेषकर महाकोसलके जैन-पुरातत्त्वकी कौन-सी सामग्री कहाँ किस रूपमें पायी जाती है, आदि अनेक महत्त्वपूर्ण ज्ञातव्य,उनमें संगृहीत हैं । मुझे आपने कुछ भाग बताया था, उसमें उल्लेख था कि आजसे ५० वर्ष पूर्व घन्सौर में २५ से अधिक जैनमन्दिर, सामान्यतः ठीक हालतमें थे । पर अब तो वहाँ केवल कुछ भागोंमें खंडहर ही दिखाई पड़ते हैं । यदि सील साहबकी डायरियाँ न होती तो आज उन्हें पहचानना कठिन ही था । ऐसी ही एक दैनंदिनी मुझे आजसे ११ वर्ष पूर्व, नागपुर जैनमंदिर स्थित हस्तलिखित ग्रंथोंके अन्वेषण करते समय प्राप्त हुई थी, जिसमें सिद्धक्षेत्र-पादलिप्तपुरके सत्रहवीं शतीसे २० शतीतकके महत्त्वपूर्ण लेख संग्रहीत हैं। इनमें मध्यप्रदेश स्थित एलिचपुरके लेख भी हैं । यह संग्रह नागपुरके एक यति द्वारा २० शतीके आदि चरणमें किया गया था । मुझे बिना किसी संकोचके कहना पड़ता है कि जैन-मुनियोंने म० प्र० के इतिहासके साधन बहुत कुछ अंशोंमें सँभाल रखे हैं, इसप्रकारके अनेक साधन इधर-उधर बिखरे पड़े हैं, जिन्हें एकत्र करना होगा।
पुरातत्त्वान्वेषणमें छोटी-छोटी वस्तुएँ भी, किसी घटना विशेषके साथ संबन्ध निकल आनेपर, महत्वकी सिद्ध हो सकती हैं। कभी-कभी ऐसे साधनसे बड़े-बड़े तद्विदोंको अपना मत परिवर्तन करना पड़ता है । अतः हमारा प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए कि ऐसे साधनोंका सार्वजनिक दृष्टि से संग्रह करें, और अन्वेषकों द्वारा प्रकाश डलवावें । ऐसे कार्योंकी प्रगतिके लिए शासनका मुँह ताके बैठे रहना व्यर्थ है । १ अगस्त १९५२]
Aho! Shrutgyanam