________________
२७४
खण्डहरोंका वैभव
सकती है। हाथोंकी कुछ उँगलियाँ भी खंडित व दक्षिण चरण भी खंडित है । आकृतिसे अनुमान यही होता है कि खुदाई करते समय टूट गये होंगे। प्रतिमाके मस्तक पर सप्तफण युक्त नाग है । फणें सभी टूट गई हैं। कलाकारने सर्पाकृतिको बैठकके नीचेसे शुरू की है, क्योंकि लांछनके स्थानपर पूँछका भाग बहुत ही स्पष्ट है । जिस आसनपर प्रतिमा विराजमान है, वह चौकीका स्मरण कराता है, उभय भागमें पार्श्वद हैं, जिनके मुख खंडित हैं । उभय भाग पार्श्वद कमल एवं लम्बे चैमर लिये खड़े हैं। तदुपरि दोनों ओर देव देवी पुष्पमाला लिये एवं नमस्कारात्मक मुद्रामें बतलाये गये हैं । तदुपरि दोनों हस्ती इस प्रकारसे रोंड़ मिलाये खड़े हैं, मानो इन्हींकी V डोंपर मध्य भागका छत्र आधृत हो । निम्न भागमें उभय
ओर ग्राह ऐसे बताये हैं कि उनके मस्तकपर ही सारी प्रतिमाका भार लदा है । दोनों ग्राहोंके बीच पद्मावतीकी छोटी मूर्ति अंकित है । प्रतिमाका निर्माण काल १२वीं शताब्दीके पूर्व तथा १३वीं शताब्दीके बादका नहीं हो सकता। पत्थर साधारण है । प्रस्तुत प्रतिमापर परिचयपत्र है, जिसमें यह बुद्ध भगवान्की प्रतिमा कही गई है।
संख्या ५-लम्बी ५६ इंच चौड़ी २६ इंच है। यह प्रतिमा जैन मूर्तिकलाका सुन्दर प्रतीक है । अन्य मूर्तियोंकी अपेक्षा भिन्न भी है । कमसे कम मेरी दृष्टि में ऐसी मूर्ति आजतक नहीं आई। कलाकी दृष्टि से तो अनुपम है ही, साथ-ही-साथ प्रतिमा-विधानकी दृष्टि से भी विलक्षण है । शब्द-चित्र इस प्रकार है___ ऊपर सूचित विस्तृत पत्थरशिलाके मध्य भागमें जिनप्रतिमा उत्कोर्णित है। मस्तकपरके बाल आदि चिह्न संख्या ४ वाली मूर्तिके अनुरूप होते हुए भी पालिस होने के कारण वह सुन्दर जान पड़ती है। पार्श्वद कलात्मक ढंगसे खड़े किये गये हैं, उनका मस्तकपरका केशविन्यास प्रेक्षणीय है । और तीर्थकरोंकी प्रतिमाओंमें पार्श्वद जिस प्रकार खड़े किये जाते हैं, उनमें और इनमें थोड़ा अन्तर है । इस परिवर्तनमें पार्श्वद बिलकुल तीर्थकरके सामने
Aho! Shrutgyanam