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खण्डहरोंका वैभव सर्वप्रथम अगस्त्य ऋषि विन्ध्याचल उल्लंघकर यहाँ आये और तपश्चर्या करने लगे। रामायणमें उल्लेख है कि इन्होंने द्रविड़ भाषामें आयुर्वेदके ग्रन्थ रचकर प्रचारित किये, एवं अनार्य दस्यु जातियोंमें आर्य-सभ्यताका प्रचार किया । शृंगी आदि सप्त ऋषियोंकी तपोभूमि रायपुर जिलेका सिहावा'
यही महानदीका उद्गम स्थान है । धमतरीसे आग्नेय कोणमें ४४ मील पर है । प्राकृतिक सौंदर्यका यह एक अविस्मरणीय केन्द्र है । यहाँ के ध्वंसावशेर्षो में छह मन्दिर अवस्थित हैं । ११६२ ई० का एक लेख भी पाया गया था, जिसमें उल्लेख है कि चन्द्रवंशी राजा कर्णने पाँच मंदिर बनवाये । जैसा कि
तीर्थे देवदे तेन कृतं प्रासादपञ्चकम् । स्वीयं तत्र द्वयं जातं यत्र शंकर केशवौ ॥८॥ पितृभ्यां प्रददौ चान्यत् कारयित्वा द्वयं नृपः । सदनं देवदेवस्य मनोहारि त्रिशूलिनः ॥१०॥ रणकेसरिणे प्रादानपयकं सुरालयम् । तद्वंशक्षीणतां ज्ञात्वा भ्रातृस्नेहेन कर्णराट् ॥११॥
चतुर्दशोत्तरे सेयमेकादशशते शके ।। वर्द्धतां सर्वतो नित्यं नृसिंहकविताकृतिः ॥१३॥
एपिग्राफिका इंडिका भा० ६, पृ० १८२ । वर्णकी वंशावली कांकेरके शिलालेखमें भी मिलती है । कहते हैं कि यहाँ शृंगीऋषिने तपश्चर्या की थी, उनकी स्मृति स्वरूप आज भी एक टपरा बना हुआ है । ५ मीलपर "रतवा" में अंगिरस और २० मील 'मेचका में मुचकुन्दका आश्रम बताया जाता है । यहाँसे आठ मीलपर देवकूट नामक स्थान,सघन जंगलमें पड़ता है । इस ओर जो पुरातन अवशेष पाये जाते हैं, वे ११वीं शतीके बादके ही हैं । यह इलाका जंगलमें पड़नेसे, पुरातत्त्व शास्त्रियोंकी निगाहसे आजतक बचा हुआ है । कब तक बचा रहेगा ? .
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