________________
मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व प्राचीन मन्दिर है। जैनदृष्टिसे बालापुरका' विशेष महत्त्व है। १७वीं शतीके जैनसाहित्यमें बालापुरका उल्लेख मिलता है । यहाँपर मुग़ल कालमें काग़ज़ बनते थे।
कौण्डिन्यपुर-यह आरवीसे चार मीलपर, वर्धा नदीके तट पर है । कृष्णका जिस भीष्मक राजाकी पुत्री रुक्मिणीसे विवाह होनेवाला था, वे यहींके राजा थे। यह स्थान आज भी तीर्थस्थानके रूपमें पूजित है। यह तीर्थ ५०० वर्षसे भी प्राचीन है, क्योंकि आज भी नगरके बाहर किलेके ध्वस्त अवशेषोंमें प्राचीन मन्दिरोंके चिह्न विद्यमान हैं । नगरसे उत्तरमें एक विशाल खण्डहरमें कुछ अच्छे, पर खण्डित अवशेष पड़े हैं, जिनमें कृष्णप्रधान दशावतारकी विशाल प्रतिमापर वि० सं० १४६६का एक लेख अंकित है। इससे विदित है कि यह प्रतिमा पहतेजोर-निवासी किसी व्यवहारीने विधापुर (? बीजापुर) में निर्माण करवाकर, प्रतिष्ठित की। मूर्तिपर मुग़ल-कलाका प्रभाव स्पष्ट है। बड़े-बड़े मीनार, जालीदार गवाक्ष, मस्तकपर विशाल लंब-गोल गुम्बज आदि प्रतिमाके उपलक्षण हैं। कृष्णलीला और गोवर्द्धनधारी कृष्णादिके भावोंको व्यक्त करनेवाले शिल्प भी हैं। पहनावेसे स्पष्टतया महाराष्ट्रीय मालूम पड़ते हैं। इन सभीके चेहरे कुछ लंबे और गोल हैं । ये महाराष्ट्रीय शिल्प-कलाके अच्छे उदाहरण हैं। ___ केलझर-इसे प्राचीन साहित्यमें चक्रनगर भी कहा गया है। यहाँ के टूटे हुए किले में एक छोटा दरवाजा दिखाई देता है, जिसपर विभिन्न देवदेवियोंके सुन्दर आकार खुदे हैं । यहाँसे ४ मीलपर एक छोटी-सी पहाड़ीपर किसी चमारके पास प्रस्तर लेख हैं, जो किसीको दिखाना पसन्द नहीं करता क्योंकि उसका विश्वास है कि यह गड़े हुए धनकी तालिका है। मैंने उससे कहा कि हम तो साधु लोग हैं, तब उसने हमें एक लेख बताया । उसीसे
मुनि कान्तिसागर, "जैनदृष्टि से बालापुर"
श्री जैन-सत्य-प्रकाश व०६ अं०, १-२-३-४,
Aho ! Shrutgyanam