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मध्यप्रदेशका हिन्दू-पुरातत्त्व शिल्प अभीतक मेरी स्मृतिको ताज़ा बनाये हुए है । माता देवकी लेटी हुई हैं और सद्यः उत्पन्न कृष्ण उनके पास पड़े हैं। आसपास कुछ मनुष्य उनकी रक्षार्थ खड़े हैं । गुप्त-वंशके बाद मध्य-प्रान्तका शासन छिन्न-भिन्न होकर राजर्षितुल्य-कुल, सोमवंश, त्रिकलिंगाधिपति, राष्ट्रकूट आदि राजवंशोंमें विभाजित हो गया। तदनन्तर नवीं शतीमें कलचुरियोंका उदय हुआ । त्रिपुरी, रत्नपुर खल्वाटिका (खलारी) आदि कलचुरियोंकी शाखाएँ थीं। समस्त चेदि-प्रान्तमें कलचुरियोंके अवशेष बिखरे पड़े हैं, जिनमें से कुछ एकका परिचय सर कनिंघमने पुरातत्त्व विभागकी अपनी सातवीं रिपोर्ट में एवं स्व० राखालदास वन्द्योपाध्यायने अपने एक ग्रन्थमें दिया है। इनसे प्रकट है कि कलचुरि-नरेशोंने शिल्प-स्थापत्य कलाको आशातीत प्रोत्साहन देकर, समस्त प्रान्तमें व्याप्त कर दिया । इनकी सूक्ष्मता चित्रकारीको भी मात करती है। इन अवशेषोंका संबंध केवल भौतिक दृष्टिसे ही नहीं, अपितु आध्यात्मिक दृष्टि से भी गहरा है। बादमें गौंड वंशका आधिपत्य प्रान्तके कुछ भागपर था । ये गौंड कौन थे ? इनका आकस्मिक उदय कहाँसे हो गया ? कदा अवश्य जाता है कि ये आदिवासियोंमेंसे हैं और रावणके वंशज हैं। इनके काल में कोई खास उन्नति हुई हो, हमें ज्ञात नहीं । इन लोगोंका कोई क्रमबद्ध इतिहास भी प्राप्त नहीं है। कहते हैं कि इनके कालमें यदि कोई पढ़ा-लिखा या पण्डित भी मिलता, तो दशहरेके दिन दन्तेश्वरी के चरणोंमें सदाके लिए सुला दिया जाता था। ऐसी स्थितिमें इनका इतिहास कौन लिखता ? मदनमहल ( जबलपुर ) के पास कुछ अवशेष और सिंगोरगढ़ादि कुछ दुर्ग ही ऐसे हैं, जो गौंड-पुरातत्त्वकी श्रेणीमें आ सकते हैं। ____ मध्य-प्रान्तमें मुग़ल-कलासे संबंध रखनेवाले प्राचीन मकानात के चिह्न भी मिलते हैं । बरारके एलिचपुर व बालापुरमें मुग़लोंके कुछ अवशेष अवश्य मिलते हैं, जिनमें मुग़ल-कलाके पल्लवित लक्षणोंका ब्यक्तीकरण हुआ है । भोंसलोंके बनवायेहुए महल, मन्दिर, दुर्ग आदि भी मिलते हैं,
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