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मध्यप्रदेशका हिन्दू पुरातत्त्व
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इलाका बताया जाता है । आज भी अटवी में पहाड़ोंके सबसे ऊँचे शिखरों पर इन महर्षियोंकी गुफाएँ उत्कीर्णित हैं, जहाँ प्रकृति-सौन्दर्य और अपार शान्तिका सागर सदैव उमड़ा करता है । इन गुफाओका रचना-काल अज्ञात है, फिर भी इतना तो बिना किसी अतिशयोक्ति के कहा जा सकता है कि ये, अजन्ता और जोगीमारा गुफाओंसे तो बहुत ही प्राचीन हैं। ये बड़ी विशाल हैं । प्राचीन भारतकी तक्षण कला के इतिहास में इनका स्थान उपेक्षणीय नहीं ।
राम और कृष्णका संबंध भी इस प्रान्तसे रहा है, क्योंकि दंडकारण्यकी स्थिति छत्तीसगढ़ में ही बताई जाती है । रामने यहाँ आकर लोकोपयोगी Sarafast थी । कहा जाता है कि उन्होंने यहाँ आकर कुछ लोगों को ब्राह्मण जातिमें दीक्षित किया, जो 'रघुनाथया ब्राह्मण' नामसे आज भी विख्यात हैं और मध्य - प्रान्त और उड़ीसा की सीमाके भीषण जंगलों में वर्तमान हैं।
भारतीय इतिहास की दृष्टिसे प्रान्तपर मौर्य वंशी राजाओंका अधिकार था । ये क्रमशः जैन और बौद्ध धर्मके अनुयायी होते हुए भी, सहिष्णु थे । इस समय वैदिक संस्कृतिका प्रचार अपेक्षाकृत कम था । शुंग और आन्ध्र वंशके समय में वैदिक संस्कृति यहाँ चमक उठी। ये वैदिक धर्मके उद्धारक, प्रचारक और संरक्षक थे। गुप्त युग में भारत पूर्णोन्नति के शिखर पर था । संसारकी शायद ही कोई कला या विद्या ऐसी थी, जिसका विकास उस समय यहाँ न हुआ हो । वैदिक संस्कृतिका उन्नत रूप तत्कालीन साहित्यिक ग्रन्थ, शिलोत्कीर्ण लेख, मुद्राएँ एवं ताम्रपत्रोंसे विदित होता है । यहाँपर वाकाटकों का साम्राज्य भी था, जिनकी राजधानी प्रवरपुर- पौनार थी । समुद्रगुप्तने अपनी दिग्विजय में वाकाटक साम्राज्य जीतने के बाद, उसके चेदिका दक्षिण भाग तथा महाराष्ट्र-प्रान्त तत्कालीन वाकाटक - सम्राट् रुद्रसेन के पास ही रहने दिये थे । इस प्रकार छोटा हो जानेपर भी वह साम्राज्य काफ़ी समृद्ध था । गुप्त नरेश शिल्प कला के अनन्य उन्नायक थे । जव
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