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मध्य प्रदेशका हिन्द-पुरातत्त्व भारतीय पुरातन शिल्प-स्थापत्यके इतिहासमें मध्यप्रान्त एवं बरारका
स्थान कई दृष्टियोंसे, इतर प्रान्तोंकी अपेक्षा, अधिक महत्त्वपूर्ण है, कलाकारोंने इन जड़ पाषाणोंपर अपने अनुपम कला-कौशल द्वारा, मानवमस्तिष्ककी उन्नत विचारधाराकी अद्भुत सजीवता चित्रित की है । मुझे तो इनमें मध्य-प्रान्तका प्राचीन सामाजिक जीवन, राष्ट्रोन्नति एवं मानवसमुदायका वास्तविक इतिहास दिखाई देता है । यह वैभव मानो मूक भाषामें सहृदय कलाकारोंसे पूछ रहा है कि क्या आजके परिवर्तनशील युगमें भी हमारी यही हालत रहेगी। संसारकी अविश्रान्त प्रगतिमें हम भी बहुत-कुछ सांस्कृतिक सहयोग दे सकते हैं । यद्यपि मध्य-प्रान्तमें विशिष्ट अवशेष अपेक्षाकृत कम ही हैं, फिर भी उनमें भारतका मुख उज्ज्वल करने की एवं पुरातन गौरवगाथाको सुरक्षित रखनेकी पूर्ण क्षमता है । इनसे, मानवमस्तिष्कको, उच्चस्थान एवं आध्यात्मिक विकासमें महान् सहयोग मिल सकता है । तद्गत लोकोत्तर जीवनको आत्माका प्रकाश किस दार्शनिकको आकृष्ट न कर सकेगा ? किन्तु भारतीय पुरातत्वके इतिहासमें इस अतुलनीय संपत्तिके भाण्डारसम, मध्य-प्रान्तको चर्चा नहीं के बराबर ही है। ___ यह सर्वमान्य नियम है कि प्रत्येक राष्ट्रकी सर्वतोमुखी उन्नतिका मूलतम स्वरूप, तात्कालिक प्रस्तरोपरि उत्कीर्णित कलात्मक अवशेषोंसे ही जाना जा सकता है । साथ ही दूसरे देश या धर्मवाले भी यदि कोई आकर्षण रखते हैं, तो केवल कलाके बलपर ही। मध्य-प्रान्तका कुछ भाग ऐसा है, जिसका स्थान संसारमें ऊँचा है । आदिमानव-सभ्यता-संस्कृतिका पालन यहींपर हुआ था । शुद्ध सांस्कृतिक जीवनगत तत्त्वोंका आभास आजतक, तत्रस्थ ग्रामीण जनताके जीवन में ही दृष्टिगोचर होता है। गृह्यसूत्र एवं वेदमें प्रतिपादित नृत्योंका प्रचार आज भी किंचित् परिवर्तित रूपमें छत्तीसगढ़में है। प्रारंभसे ही इस प्रान्तमें वैदिक संस्कृतिका प्रचार रहा है
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