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________________ ३३८ खण्डहरोंका वैभव सर्वप्रथम अगस्त्य ऋषि विन्ध्याचल उल्लंघकर यहाँ आये और तपश्चर्या करने लगे। रामायणमें उल्लेख है कि इन्होंने द्रविड़ भाषामें आयुर्वेदके ग्रन्थ रचकर प्रचारित किये, एवं अनार्य दस्यु जातियोंमें आर्य-सभ्यताका प्रचार किया । शृंगी आदि सप्त ऋषियोंकी तपोभूमि रायपुर जिलेका सिहावा' यही महानदीका उद्गम स्थान है । धमतरीसे आग्नेय कोणमें ४४ मील पर है । प्राकृतिक सौंदर्यका यह एक अविस्मरणीय केन्द्र है । यहाँ के ध्वंसावशेर्षो में छह मन्दिर अवस्थित हैं । ११६२ ई० का एक लेख भी पाया गया था, जिसमें उल्लेख है कि चन्द्रवंशी राजा कर्णने पाँच मंदिर बनवाये । जैसा कि तीर्थे देवदे तेन कृतं प्रासादपञ्चकम् । स्वीयं तत्र द्वयं जातं यत्र शंकर केशवौ ॥८॥ पितृभ्यां प्रददौ चान्यत् कारयित्वा द्वयं नृपः । सदनं देवदेवस्य मनोहारि त्रिशूलिनः ॥१०॥ रणकेसरिणे प्रादानपयकं सुरालयम् । तद्वंशक्षीणतां ज्ञात्वा भ्रातृस्नेहेन कर्णराट् ॥११॥ चतुर्दशोत्तरे सेयमेकादशशते शके ।। वर्द्धतां सर्वतो नित्यं नृसिंहकविताकृतिः ॥१३॥ एपिग्राफिका इंडिका भा० ६, पृ० १८२ । वर्णकी वंशावली कांकेरके शिलालेखमें भी मिलती है । कहते हैं कि यहाँ शृंगीऋषिने तपश्चर्या की थी, उनकी स्मृति स्वरूप आज भी एक टपरा बना हुआ है । ५ मीलपर "रतवा" में अंगिरस और २० मील 'मेचका में मुचकुन्दका आश्रम बताया जाता है । यहाँसे आठ मीलपर देवकूट नामक स्थान,सघन जंगलमें पड़ता है । इस ओर जो पुरातन अवशेष पाये जाते हैं, वे ११वीं शतीके बादके ही हैं । यह इलाका जंगलमें पड़नेसे, पुरातत्त्व शास्त्रियोंकी निगाहसे आजतक बचा हुआ है । कब तक बचा रहेगा ? . Aho! Shrutgyanam
SR No.034202
Book TitleKhandaharo Ka Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantisagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1959
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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