________________
३०४
खण्डहरोंका वैभव
उद्धृत किये हैं' । रसरत्नाकर और कत्तपुटल नागार्जुनकी रचना मानी जाती है ।
अलबेरुनीकी भ्रामक परम्परा के आधारपर गुजरातके शोधक श्री दुर्गाशंकर भाई शास्त्रीने तीसरे – आयुर्वेदज्ञ -- नागार्जुनकी कल्पना की है, पर उपर्युक्त विवेचनके बाद इस कल्पनाकी गुंजायश नहीं रहती ।
वाकाटक
वाकाटकोंका साम्राज्य बुंदेलखंड से लगाकर खानदेशतक फैला हुआ था । स्व० काशीप्रसाद जायसवालने इसका मूल स्थान वाकाट स्थिर किया है, जो वर्तमान में ओड़छा राज्यान्तर्गत है । नागवंशी राजा भवनागका दौहित्र राजा रुद्रसेन था । इनको नानासे राज्याधिकार प्राप्त हुए थे । इस वंश के राजाओंके ताम्रपत्र मध्यप्रदेश के सिवनी, बालाघाट, अमरावती और छिन्दवाड़ा जिले से प्राप्त हुए हैं । इनकी राजधानी 'पुरिका"प्रवरपुर में थी । वर्तमानका पौनार ही प्राचीन प्रवरपुर जान पड़ता है । यहाँपर प्राचीन अवशेष और सिक्के भी चातुर्मास में मिल जाते हैं । यहाँ जैन मूर्तियाँ एवं मध्यकालीन लेख भी मिले हैं। मुझे कुछेककी छापें बाबू पारसमलजी सराफ एम० ए०, एल-एल० बी० द्वारा प्राप्त हुई थीं । मगधके सम्राट् चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ने स्वपुत्री प्रभावती गुप्त रुद्रसेनको ब्याही थी,
दुर्गाशंकर के० शास्त्री - ऐतिहासिक संशोधन, पृ० ४६८ ।
जनरल कनिंघम के मतानुसार वर्धा नदीका पूर्वी भाग वाकाटक राज्य था और संभवतः उनकी राजधानी भद्रावती - भांदक थी । प्रशस्तियों में 8 वाकाटक नरेशोंके नाम मिलते हैं । अजंटामें वाकाटक वंशकी जो प्रशस्ति है, उसके अनुसार वाकाटकोंने अपने निकटवर्त्ती निम्न राजाओं को जीता था -१ कुंतल ( महाराष्ट्रका दक्षिण भाग ) २ अवन्ती, ३ कलिंग, ४ कोसल, ५ त्रिकूट ( थाना जिला ), ६ लाट ( दक्षिण गुजरात ), ७ आन्ध्र ( वारंगल ) ।
Aho! Shrutgyanam