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खण्डहरोंका वैभव उनका भी संबंध बौद्धोंसे होना चाहिए । यद्यपि पद्मासनस्थ प्रतिमाओंके कारण कुछ लोग इसे जैन गुफा प्रसिद्ध करते हैं।
सोमवंशके परवर्ती शासकोंके साथ गुप्त नाम भी जुड़ गया । जिससे इतिहासकारोंने इनकी परिगणना इनके पिछले गुप्तोंमें कर ली।
बरार प्रान्तमें बौद्ध धर्मसे संबंधित अवशेष मिलते हैं, वे उपर्युक्त वंशके कारण ही । मध्यप्रदेशको सीमापर अवस्थित 'अजण्टा'की गुफाएँ भी अविस्मरणीय हैं । इनका विकास भी क्रमिक रूपसे हुआ था। सोमवंशी नरेशोंके समय अजण्टाके बौद्ध श्रमणोंका आवागमन बरारमें निश्चित रूपसे होता रहा होगा । जनता भी उनके उपदेशोंसे अनुप्राणित होती रही होगी।
सोमवंशी शैव कब हुए ?
सोमवंशीय शासक श्रीपुर-सिरपुर (जिला रायपुर) में आये तो बौद्ध थे या शैव, यह एक समस्या है । स्व० डा० हीरालालजीका मत है कि वे भद्रावतीमें ही शैव हो गये थे और बादमें उन्होंने अपनी राजधानी महानदीके किनारे श्रीपुर में स्थानान्तरित की । मैं डा० साहबके इस कथनसे सहमत नहीं हूँ। मेरा तो यह दृढ़ विश्वास है कि सोमवंशी पांडव श्रीपुर आनेके बाद भी कुछ कालतक बौद्ध बने रहे, जैसा कि सिरपुर व तत्सन्निकटवर्ती
जैन एण्टीक्वेरी, दिसम्बर १६५०, पृ० ३६-४० । "मध्यप्रदेशका इतिहास" पृष्ठ २३ ।
"दुग बहुत प्राचीन स्थान है । यहाँपर एक बुद्धकी मूर्ति तथा ऐसे कई चिह्न मिले हैं, जिनसे जान पड़ता है कि यहाँ बौद्धमतका बड़ा प्रचार था । पाली अक्षरों में (भाषामें ) यहाँपर एक लेख भी मिला था"
द्रुग-दर्पण पृ० ७३ ।
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