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मध्यप्रदेशका बौद्ध- पुरातत्त्व
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कुछ व्यवसायी लोगोंने उठा-उठाकर, वहाँके सौन्दर्यको नष्ट कर दिया । यदि किसी पर्यटक नोटके आधारपर, किसी कलाकृतिकी गवेषणा की जाय, तो निराश ही होना पड़ेगा । मैं स्वयं इसका भुक्त भोगी हूँ । इतने विशाल सांस्कृतिक क्षेत्रपर न जाने राज्य शासनका ध्यान क्यों आकृष्ट न हुआ ?
त्रिपुरीकी बहुत-सी सामग्री तो इंडियन म्युजियममें कलकत्ता चली गई, जिसमें भगवान् बुद्धकी प्रवचन- मुद्राकी एक महत्त्वपूर्ण प्रतिमा भी सम्मिलित है । बुद्धदेवकी यह मूर्ति कलाकी दृष्टिसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ।
२४ फरवरी १६५१ में, मैं जब त्रिपुरी गया था, तब मुझे अन्य पुरातत्त्व विषयक महत्त्वपूर्ण सामग्री के साथ, अवलोकितेश्वर एवं बुद्धदेवकी भूमिस्पर्श मुद्रास्थित मूर्तियाँ मिली थीं। दोनों मूर्तियाँ क्रमशः एक चमार व लढ़िया से प्राप्त हुई थीं । प्रथम तो दीवालमें लगी हुई थी, दूसरी एक वृद्धाके घरमें रखी हुई थी । याचना करने पर मुझे उन दोनोंने प्रदान कर दी थी । उनका परिचय इस प्रकार है
अवलोकितेश्वर
यों तो अवलोकितेश्वरकी प्रतिमाएँ विभिन्न प्रान्तोंमें अपने-अपने ढंगी अनेक पाई जाती हैं । उनमें अवलोकितेश्वर के मौलिक स्वरूपकी रक्षा करते हुए, एवं बौद्ध-मूर्ति-विज्ञान के नियमों के अनुकूल बहुत से प्रान्तीय कलातत्त्व समाविष्ट कर दिये हैं । प्रस्तुत प्रतिमा उन सबसे अनूठी और विशिष्ट है । अवलोकितेश्वरका प्राचीन स्वरूप अजन्ताकी चित्रकारी में है, जो कि खड़ा हुआ स्वरूप है । बैठी हुई जितनी मुद्राएँ उपलब्ध हैं उनमें दाहिना पैर रस्सीसे कसा हुआ शायद नहीं है । प्रस्तुत प्रतिमा में बायें कन्धे से तन्तु सूत्र प्रारम्भ होते हैं, वहाँ से वे कर्णकी नाई ( Diagonally ) दायीं ओर नाभीके ऊपरसे दायें नितम्बपरसे दायीं जंघाके नीचे लपेटा मार, दायें घुटने के निम्न भागको कसते हुए समाप्त होते हैं । प्रस्तुत अवलोकितेश्वरके मुकुटको देख भगवान् शंकरके किरीट मुकुटका स्मरण हो आता है ।
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Aho ! Shrutgyanam