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खण्डहरोंका वैभव
लिये
हुए है । इसपर व्यक्तिका दायाँ चरण स्थापित है । बायाँ चरण नाभि प्रदेशके निम्न भागमें है। हाथ पुस्तिका से सुशोभित है। व्यक्तिकी मुख-मुद्रासे ऐसा प्रतीत होता है कि वह अध्ययन एवं मनन में बहुत ही व्यस्त है । आँखोंके ऊपरका भाग उठकर भालस्थलपर रेखाएँ खिंच गई हैं- जैसे कोई बहुत बड़ी समस्याओंने उलझा रक्खा हो । कानों में कुंडल हैं। जटा बिखरी हुई हैं । पारदर्शक एक उत्तरीय वस्त्र अव्यवस्थित रूपसे पड़ा है। कलाकारने इस प्रतिमा में गहन चिन्तन मुद्राको ऐसा मूर्त किया है, कि देखते ही बनता है ।
इन मूर्तियोंके अतिरिक्त एक दर्जन से अधिक प्रतिमाएँ भगवान् बुद्धदेवके जीवन-क्रमपर प्रकाश डालनेवाली घटनाएँ प्रस्तुत करती हैं । मैं उनमें से एक विशाल प्रतिमाके परिचय देनेका लोभ संवरण नहीं कर सकता । मुझे इस प्रतिमाने बहुत प्रभावित किया । १५ इंच चौड़ी और ८ इंच लम्बी धातु पट्टिकापर जीवनकी तीन घटनाएँ सामूहिक रूपसे अंकित हैं । प्रथम घटना 'मारविजय' की है । इसमें सबसे बड़ी कुशलता यह दृष्टिगोचर होती है कि महाकोसलके सक्षम कलाकारने गतिशील भावोंको, अपनी चिरसाधित छैनीसे तादृश रूपसे स्थितिशील कला द्वारा व्यक्त करनेका सफल प्रयास किया है। नारियोंके नृत्यकालीन गोंकी सुकड़न के साथ नेत्रोंपर पड़नेवाला प्रभाव व नारी-सुलभ चाञ्चल्य प्रत्येक के मुखपर परिलक्षित होता है । महाकोसलीय नारी- मूर्ति कला व नृतत्त्व शास्त्रीय परम्पराके प्रकाशमें जिसे यहाँको नारियोंका अध्ययन करनेका सुअवसर मिला है, वे ही इस पट्टिकान्तर्गत उत्कीर्णित नारियोंकी प्रादेशिक मौलिकताका व शारीरिक गठनका अनुभव कर सकते हैं । संगीतके विभिन्न उपकरणोंमें यहाँ एक बाँस भी है । वंशवादन आज भी महाकोशलकी आदिवासी जातियोंके लिए सामान्य बात है । आभूषण भी विशुद्ध महाकोसलीय ही हैं, कारण कि तात्कालिक व तत्परवर्ती दो शताब्दियों तक वैसे आभूषण प्रस्तरादि मूर्तियों में व्यवहृत हुए हैं।
Aho ! Shrutgyanam